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-जिस शब्द का जो अर्थ है उसको सप्तम्यन्त से दिया है और उसके नीचे [,] यह चिह्न दिया है और उसके बाद जिस ग्रन्थ से वह अर्थ लिया गया है उसका नाम नी दे दिया है । यदि उसके आगे उस ग्रन्थ का कुछ नी पाठ नहीं है तो उस ग्रन्थ के आगे अध्ययन उद्देशादि जो कुछ मिला है वह भी दिया गया है और यदि उस ग्रन्थ का पाठ मिला है तो पाठ की समाप्ति में अध्ययन उद्देश आदि रक्खे गये हैं, किन्तु अर्थ के पास केवल ग्रन्थ का ही नाम रक्खा है ।।
५-मागधीशब्द और संस्कृत अनुवाद शब्द के मध्य में तथा लिङ्ग और अनुवाद के मध्यमें भी (-)यह चिह्न दिया है। इसी तरह तदेव दर्शयति-तथा चाह- या अवतरणिका के अन्त में भी आगे से संबन्ध दिखाने के लिये यही चित्र दिया गया है।
६-जहाँ कहीं मागधी शब्द के अनुवाद संस्कृत में दो तीन चार हुए हैं तो दूसरे तीसरे अनुवाद को भी मोटे ही अक्षरों में रक्खा है किन्तु जैसे प्राकृत शब्द सामान्य पङ्क्ति (लाईन )से कुल बाहर रहता है वैसा न रखकर सामान्य पक्ति के बराबर ही रक्खा है और उसके आगे नीलिङ्गप्रदर्शन कराया है। बाकी सभी बात पूर्ववत् मूलशब्द की तरह दी है।
७-किसी किसी मागधीशब्द का अनुवाद संस्कृत में नहीं है किन्तु उसके आगे 'देशी' लिखा है वहाँ पर देशीय शब्द समझना चाहिये, उसकी व्युत्पत्ति न होने से अनुवाद नहीं है ।
८-किसी शब्द के बाद जो अनुवाद है उसके बाद लिङ्ग नहीं है किन्तु (धा ) लिखा है उससे धात्वादेश समझना चाहिये।
ए-कहीं कहीं (ब० व०)(क० स०)(बहु० स०) (त० स० ) (न० त०) (३ त० ) (४०) (एत०) (६ त०) (७०) (अव्ययी० स०) आदि दिया हुआ है उनको क्रमसे बहुवचन; कर्मधारय समास; बहुव्रीहि तत्पुरुष नञ्तत्पुरुष तृतीयातत्पुरुष; चतुर्थीतत्पुरुष; पञ्चमीतत्पुरुष, षष्ठीतत्पुरुषः सप्तमीतत्पुरुष, अव्ययीभाव समास समऊना चाहिये। १०- पुं० । स्त्री ।न। त्रि० । अन्य०-का संकेत क्रम से द्विङ्गः स्त्रीलिङ्ग नपुंसकलिङ्ग त्रिलिङ्ग और अव्यय समझना।
अध्ययनादि के सङ्केत और वे किन किन ग्रन्थों में हैं
११-१०-अध्ययन- आवश्यकचूर्णि, भावश्यकत्ति, प्राचाराक, उपासकदशाम, उत्तराध्ययन, ज्ञाताधर्मकथा,
दशाश्रुतस्कन्ध, दशबैकालिक, विपाकसूत्र और सूत्रकृतान में हैं। २ अधिo- अधिकार- अनेकान्तजयपताकावृत्तिविवरण, गच्यचारपयत्रा, धर्मसंग्रह और जीवानुशासन में हैं। ३ अध्या०- अध्याय- व्यानुयोगतर्कणा में हैं।
भ्रष्ट०- अष्टक-हारिभाष्टक और यशोविजयाष्टक में हैं। ५ ज०- उद्देश- सूत्रकृताङ्ग, जगवती, निशीथचूर्णि, बृहत्कल्प, व्यवहार, स्थानान और प्राचाराक में हैं। ६ उद्या-नल्लास-सेनप्रश्न में हैं। ७ कर्म-कर्मग्रन्थ- कर्मग्रन्थ में हैं। ८ कल्प-कन्प-विविधतीर्थकल्प में हैं। एग०-गणा- स्थानाङ्गसूत्र में हैं। १०खएम-खएम-उत्तराध्ययननियुक्ति में है। ११क्षण-क्षण-कल्पसुबोधिका में हैं। १५ काएम-काएक- सम्मतितर्क में हैं। १३ घा०-द्वात्रिंशिका-द्वात्रिंशददात्रिंशिका में हैं। १४ द्वार-द्वार- पञ्चवस्तुक, पञ्चसंग्रह, प्रवचनसारोदार और प्रश्नव्याकरण में हैं। (प्रश्नव्याकरण में आश्रवद्वार और संवरद्वार के नाम से ही द्वार प्रसिक ) , १५ पद-पद-प्रझापनासूत्र में हैं। १६ परि०- परिच्छेद- रत्नाकरावतारिका में हैं। १७ चू- चूलिका- दशकालिक और प्राचाराक में हैं।
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