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जैन आगम : वनस्पति कोश
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भूरिगन्धा च सुरिभ, र्गन्धाद्या गन्धमादनी।। होने पाते। ये गोलाकार चपटे, छोटे-छोटे टुकड़े, कचूर
गन्धवती, दैत्या, हृद्या, गन्धकुटा, कुटी, भूरिगन्धा, के टुकड़ों जैसे ही बाजार में बिकते हैं। भेद इतना ही सुरभि, गन्धाद्या और गंधमादनी ये पर्याय मुरा के हैं। है कि ये कपूरकचरी के टुकड़े अत्यन्त श्वेत, कपूर की
(कैयदेव नि० ओषधिवर्ग पृ० २५७) विशिष्ट सुगंधयुक्त होते हैं। इनके किनारों पर अन्य भाषाओं में नाम
लालिमायुक्त भूरे रंग की छाल लगी होती है। इस छाल हि० कपूरकचरी (काचरी). शोदुरी, सितरुती। पर श्वेत गोल-गोल चिन्ह भी होते हैं। गुण-धर्म में यह कचूर म०-कापूरकाचरी, सीर, सुत्ती, गंधशटी, बेलतीकच्चर। की अपेक्षा उत्तम माने जाते हैं। गु०-कपूरकाचली, गन्धपलाशी। बं०-कपूरकाचरी।। ऊपर का वर्णन भारतीय कपूर कचरी का है। चीनी
उत्पत्ति स्थान-कपूरकचरी भारत के पूर्वी प्रान्तों कपूरकचरी भारतीय की अपेक्षा आकार प्रकार में कुछ में तथा हिमालय के कुमायुं, नेपाल, भूटान आदि देशों बड़ी अत्यधिक श्वेत किन्तु बहुत कम चरपरी होती है। में, पंजाब में तथा चीन देश में अधिक होती है। काश्मीर । इसका ऊपरी छिलका विशेष चिकना तथा हलके रंग का की ओर इसे वनहल्दी कहते हैं। किन्तु यह वनहल्दी से । होता है। यह दीखने में सुंदर किन्तु गुण और गंध में भिन्न है।
भारतीय से घटिया होती है। विवरण-इस हरिद्राकुल की वनौषधि की गणना
(धन्वन्तरि वनौषधि विशेषांक भाग २ पृ० १२७) चरकसंहिता में श्वासहर एवं हिक्कानिग्रहण गणों में की गई है। कपूरकचरी को कहीं-कहीं छोटा कचूर भी कहते
कुडुंबय हैं। हरिद्रा के क्षुप जैसे ही किन्त लताकार, इसके
कुडुंबय (कुतुम्बक) द्रोणपुष्पी, गूमा । बहुवर्षायु क्षुप, ४ से ६ फुट ऊंचे होते हैं। हिमालय के पहाड़ी लोग इसे सेंदुरी कहते हैं, क्योंकि इसके फल कुछ
गूमा (हलकुसा) पं० १/४८/४३ उत्त० ३६।६८ । सिन्दुरी वर्ण के होते हैं। इसके क्षुप के काण्ड पत्रमय
LEUCAS LINIFOLIA SPRENG होते हैं। पत्ते डंठल रहित, लगभग एक फुट लम्बे चौड़े गोलाकार भाले जैसे होते हैं। इसके पुष्पदण्ड शाखा प्रशाखा युक्त श्वेतवर्ण के, मधुर, सुगंधित, लम्बे गोलाकार डंठलरहित पुष्प १ से १.५ इंच लम्बे, पौन इंच चौड़े, परतदार (एक पुष्प पर दूसरा पुष्प इस तरह नियमित वर्षाकाल में निकलते हैं। फल आयताकार (लम्बाई चौड़ाई से अधिक तथा दोनों किनारे समानान्तर) चिकने, चमकदार, भीतर से पीताभ, किंचित्, सिन्दुरवर्ण के होते
पुष्प जड़ या कंद-क्षुप के नीचे जमीन के भीतर चारों ओर फैले हुए इसके मूलस्तम्भ गांठदार (अनेक गोल मांसल खंडों की माला जैसे) होते हैं। ये छोटे-छोटे कंद लम्ब गोलाकार किंचित् कपूर जैसी सुगन्धि से युक्त, स्वाद में कड़वे और चरपरे होते हैं। इन कंदों को जल में औटाकर गोल-गोल टुकड़े कर सुखा कर रखते हैं। ऐसा करने से ये कृमि तथा वायु आदि से दूषित नहीं
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पत्र
RA
शारखा
Hinder
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