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________________ 66 रक्तगुंजा और गुंजाका अर्थ श्वेतगुंजा ग्रहण किया है। धन्वन्तरि निघंटु में रक्तिका को काकादनी और गुंजा को चूड़ामणि का पर्याय माना है । अन्य भाषाओं में नाम हि० - गुंजा, घुंघची, घुँघची, चिरमी, चिरमिटी, घुमची, करजनी, रत्ती, चौटली । बं०-कुंच, सादा कुंच । म० - गुंज | को० - माडल बेल । गु० - चणोठी राती । क० - गुलगुति, गुरुगुजी । मल० - कुन्नि । ता० - कुन्थमणि, कुँरि । प० - चर्मटी । ते० - गुरुगिंज। उडिο- रुंज । तु० - गोजी । फा० - चस्मे खरूस, सुर्ख । अ०- हबसुर्ख । अँo - Gequirity (जेक्विरिटी) । ले० - Abrus precatorius linn (एब्रस प्रिकेटोरिअस लिन) । उत्पत्ति स्थान - घुंघची की बेल भारत में प्रायः सर्वत्र जंगल एवं झाड़ियों में पाई जाती है । विवरण- गुडूच्यादि वर्ग एवं नैसर्गिक क्रमानुसार शिम्बीकुल की अनेक पतली, लचीली शाखायुक्त, वर्षायु, सुन्दर चक्रारोही पराश्रयी लता होती है। पत्र इमली पत्र जैसे, किंचित बड़े, संयुक्त १ से ३ इंच तक लम्बे, पत्रक ८ से २० तक जोडे, विपरीत, १/२ से १ इंच लम्बे एवं १/३ इंच चौड़े होते हैं। पुष्प शरद ऋतु में सेम के पुष्प जैसे किन्तु बडे, सघन गुच्छों में गुलाबी या नीले रंग के आते हैं। फली १ से १.५ इंच लम्बी 1/4 से १/२ इंच चौड़ी रोमश, नुकीली, गुच्छों में लगती है। बीज प्रत्येक फली में जाति के अनुसार लाल, श्वेत या काले रंग के अंडाकार छोटे, चिकने, चमकीले एवं कड़े, २ से ६ तक होते हैं। इन बीजों को ही गुंजा, घुंघची कहते हैं । शीतकाल में फली के पक जाने पर लता सूख जाती है तथा वर्षा के प्रारंभ में पुनः मूल से लता अंकुरित हो उठती है। मूल काण्डमय टेढीमेढी अनेक शाखा युक्त होती है। इसके पत्र और मूल में मुलैठी जैसी ही मिठास होती है। कई लोग भ्रमवश इसी के मूल को मुलैठी मानते हैं । ( धन्वन्तरि वनौषधि विशेषांक भाग २ पृ० ४०३) विमर्श - गुंजा ३ प्रकार की होती है-लाल, श्वेत और काली । लाल - इसके मुख पर काला दाग होता है। श्वेत- यह संपूर्णश्वेत होती है। बहुतकम प्राप्त होती है । काली - श्वेत लाल की अपेक्षा कुछ बड़ी, काले रंग की, मुख पर कुछ श्वेत दाग युक्त काले उडद जैसी होती Jain Education International है । जैन आगम वनस्पति कोश काय ( ) भ० २३/४ प० १/४७ विमर्श - उपलब्ध निघंटुओं और आयुर्वेदीय शब्द कोशों में काय शब्द वनस्पतिपरक अर्थ में नहीं मिला है। शास्त .... काय कायमाई (काकमाची) मकोय प० १/३७/२ विमर्श - प्रस्तुत प्रकरण में कायमाई शब्द गुच्छ वर्ग के अन्तर्गत है ।। मकोय के पुष्प गुच्छाकार लगते हैं। BER कायमाई काकमाची ध्वाङ्क्षमाची, काकाहवा चैव वायसी । कट्वी कटुफला चैव, रसायन वरा स्मृता ।।१८ || ध्वाङ्क्षमाची, काकाहवा, वायसी, कट्वी, कटुफला, रसायनवरा ये काकमाची के पर्याय नाम हैं । ( धन्वन्तरि नि० ४ / १८ पृ० १८५) अन्य भाषाओं में नाम For Private & Personal Use Only मूल हि० - मकोय, छोटी मकोय | फल www.jainelibrary.org
SR No.016039
Book TitleJain Agam Vanaspati kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size8 MB
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