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विवरण- फलने पर इसका पेड नष्ट हो जाता है । अन्तर्भूमिशायी कंद से अंकुर निकल वृक्ष तैयार हो जाता । इसके बड़े-बड़े लंबे पत्ते मुलायम होते हैं। हवा के झोकों से जगह-जगह फट जाते हैं। इसके पत्तों पर भोजन करते हैं । भारतवर्ष में उत्पन्न होने वाले फलों में 1 आम के बाद केला ही है। सब प्रकार के केलों में बंबई का लालकेला, कलकत्ते का चाटिमकेला, चम्पककेला, (पीला केला ) प्रशंसा के योग्य हैं। पर्वतीकेला, कालाकेला राजभोग, मानभोग, चीनिया आदि केले भी बढ़िया गिने जाते हैं। अच्छी किस्म के फलों में बीज नहीं होते । (भाव०नि० आम्रादि फलवर्ग० पृ० ५५६)
केले का वृक्ष बहुत ऊंचा होता है, पत्ते दो चार गज लंबे और आध-आध गज चौड़े होते हैं। यह वृक्ष खंभ के समान होता है और पत्ते में पत्ते निकलते चले जाते हैं। सिवाय पत्तों के और कोई शाखा इसमें नहीं होती, केवल पत्तों से ही वेष्टित होता है। उसके बीच में एक डंडा निकलता है। उस डंडे पर एक हजार फली आती है।
(शालि० नि० पृ० ७२४)
कदुइया
कदुइया (
प० १/४०/२
विमर्श - वनस्पति कोष में संस्कृत में यह शब्द तथा इससे निकटवर्ती शब्द नहीं मिलता। हिन्दी भाषा में कद्दूशब्द मिलता है। निघंटु आदर्श पूर्वार्द्ध पृ० ६५६ में कद्दू का अर्थ लालपेठा किया है इसलिए कहुइया शब्द के लिए कद्दू का वाचक लालपेठा और मीठी तुम्बी अर्थ ग्रहण कर रहे हैं। अन्य भाषाओं में नाम
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) मीठी तुम्बी, लालपेठा
सं० - अलाबु, मिष्टतुम्बी । हि० - कद्दू, मीठा कद्दू, लौका, लौकी, लौआ, रामतरोई, मीठी तुम्बी, घिया आदि। म० - दुध्या भोंपला । बं०-लाउ, कोदू मिष्टलाऊ । गु० - दुधियुं तुंबडी । क० - उबलकाई । ते० - अलबुवु, आनपकाया । फा०—कदुशीरिन् । ० - युक्तिनेहुलुकर अं० - White gourd (ह्वाइट गोर्ड) Sweat gourd (स्वीट गोड) । ले० - Cucurbita Lagenaria
अ०
( कुकुरबिटा लेजेनेरिया) ।
पत्र
फल
लता
जैन आगम वनस्पति कोश
कली
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पुष्प
फल
उत्पत्ति स्थान- यह प्रायः सब प्रान्तों में रोपण की जाती है। खेत, बाग, मचान, छप्पर आदि पर फैली हुई इसकी बेल देखने में आती है।
विवरण- इसके पत्ते मृदुरोमश ६ से ७ इंच घेरे में गोलाकार, पंच कोणाकार या पांच खण्ड वाले होते हैं। फूल सफेद रंग के आते हैं। फल १ से २ हाथ लंबागोल या गोल अथवा चिपटागोल विभिन्न प्रकार का होता है। कृषिजन्य के अनेक आकार होते हैं। कृषिजन्य की गुद्दी मीठी होती है। (भाव० नि० शाकवर्ग० पृ० ६८१ ) मीठी तुम्बी की बेल कड़वी तुम्बी जैसी ही होती है। फल के आकार में भी साम्य होता है। बीज कुछ भूरा चिपटा तथा सिरे पर त्रिशीर्ष युक्त होता है। कड़वी तुम्बी के बीज की अपेक्षा इसके बीज कुछ छोटे और मटमैले से होते हैं। यह वर्ष में दो बार फलती फूलती है। बंगाल
सभी प्रकार के कद्दू को कदु या लाऊ कहते हैं । किन्तु उत्तर प्रदेश के कई स्थानों पर गोल फल वाले को कद्दू तथा लंबे फल को लौकी, लौआ आदि कहते हैं। ( धन्वन्तरी वनौषधि विशेषांक भाग २ पृ० ८१ )
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