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जैन आगम : वनस्पति कोश
उत्पत्ति स्थान-इस देश में गरम प्रान्तों में पूर्व नेपाल से आसाम खासिया के पहाड़ों पर, बंगाल में पश्चिम की ओर बंबई तक तथा दक्षिण की ओर ट्रावनकोर तक पायी जाती है, सीलोन, मलाक्का तथा फिलीपाइन द्वीपों में भी यह पाई जाती
कण्ह कण्ह (कृष्णा) पीपल, पीपर। प०१/४०/३ कृष्णा के पर्यायवाची नाम
पिप्पली मागधी कृष्णा वैदेही चपला कणा उपकुल्योषणा शौण्डी कोला स्यात् तीक्ष्णतण्डुला
पिप्पली,मागधी, कृष्णा,वैदेही, चपला,कणा, उपकुल्या, ऊष्णा,शौण्डी, कोला और तीक्ष्णतण्डुला ये सब संस्कृत नाम पीपर के हैं। (भाव०नि० हरीतक्यादि वर्ग पृ०१५) अन्यभाषाओं के नामहि०-पीपर, पीपल।बं०-पीपुल,पिपुलाम०-पिंपली।गु०पीपर, लीड़ीपीपल, लिंडीपीपल। क०-हिप्पली। ते०पिप्पलु, पिप्पलि,पिप्पलचेटुाता०-तिप्पिली।तु०-इप्पली। मला०-तिप्पली। ब्राह्मी-पौरवीन। गोम०-हिपली। मा०पीपल। फा०-पिलपिल दराज, फिलफिल दराज। अ०दारफिल्फिलाडालफिल्फिलाअं०-Long Peppr (लॉग पीपर) Dried catkins (ड्राइड कॅट किन्स)। ले०-Piper Longum Linn (पाइपर लॉगम) Chavica Roxburghii (चविकाराक्सबर्घाइ)।
विवरण-पीपल लताजाति की वनौषधि का फल है। इसकी बेल अन्य लताओं की भांति अधिक विस्तार में नहीं बढ़ती किन्तु थोडी ही दूर में फैलती है। पत्ते २-१/२ से ३-१/२ इंच के घेरे में, गोलाकार पान के पत्तों के आकार वाले कोमल होते है। ऊपर के पत्ते बिनाल होते है। फल गुच्छ १ से १-१/२ इंच लंबे और कृष्णाभ होते हैं। जिनमें अत्यन्त छोटेछोटे फल लगे रहते हैं।
(भाव०नि० हरीतक्यादि वर्ग० पृ०१६)
कण्ह कण्ह (कृष्णा) कृष्ण तुलसी। प०१/४४/३
विमर्श-प्रस्तुत प्रकरण में कण्ह शब्द तुलसी शब्द के अनन्तर ही है। लगता है यह कण्ह शब्द कृष्ण तुलसी का वाचक होना चाहिए। यहां कृष्णतुलसी का अर्थ ग्रहण किया जा रहा है। कृष्णा के पर्यायवाची नाम
तुलसी सुरसा कृष्णा भूतेष्टा देवदुन्दुभिः भूतप्रिया नागमाता चक्रपर्णी सुमंजरी॥ १५५१॥ स्वादुगन्धच्छदा भूतपति श्चापेतराक्षसी॥
तुलसी, सुरसा, कृष्णा, भूतेष्टा, देवदुन्दुभि, भूतप्रिया, नागमाता, चक्रपर्णी, सुमञ्जरी, स्वादुगन्धच्छदा, भूपति, अपेतराक्षसी ये सब कृष्ण तुलसी के नाम है।
(कैयदेव०नि० ओषधिवर्ग पृ०६३३) अन्य भाषाओं में नाम
हि०-तुलसी। बं०-तुलसी। गु०-तुलसी। म०-तुलस। ते०-गग्गेर चेट्ट। ता०-तुलशी। क०-एरेड तुलसी। अं०Holy Basil (होली वेसिल)।ले०-Ocimum Sanctum Linn(ओसीमम् सेंक्टम्)।
उत्पत्ति स्थान- केवल भारतवर्ष में ही प्रायः सर्वत्र उष्ण एवं साधारण प्रदेशों के वनों उपवनों में निसर्गतः होती है एवं घरों, मंदिरो में भी प्रचुरता से पूजाकार्यार्थ तथा मलेरिया आदि रोगों के कीटाणुनाशार्थ वायुशुद्धि के लिए लगाई जाती है।
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पिप्पली
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