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________________ जैन आगम : वनस्पति कोश विवरण-गूलर के मध्यमाकारी (कभी कभी ऊंचे) तथा वायविंडग के पर्यायवाची नामपतझड़ करने वाले क्षीरीवृक्ष होते हैं। जिसकी शाखाएं पावों विडङ्ग कृमिजिद् वेल्लं जन्तुनं मृगगामिनी। में न फैलकर प्रायःसीधी ऊपर की ओर बढ़ती है। काण्डस्कंध कृमिहन्तृ कृमिहरं कैरलं चित्रतण्डुलम् ॥ ११४७॥ अपेक्षा कृत लंबा एवं मोटा कुछ टेढा होता है।छाल खाकस्तरी अमोघा तण्डुला घोषा, भूतघ्नं कृमिहृदपि ॥ ११४८॥ या लालिमा लिए भूरे रंग की या मुरचई रंग लिए हरिताभ विडङ्ग, कृमिजित्, वेल्ल, जन्तुघ्र, मृगगामिनी, कृमिहन्त, अथवा हरिताभ भूरे रंग की होती है। इसके वृक्ष पर क्षत करने कृमिहर, कैरल, चित्रतण्डुल, अमोघा, तण्डुला घोषा, भूतघ्न से काफी दूध जैसा स्राव निकलता है, जो थोडी देर रखने पर एवं कृमिहृत् ये सब वायविडंग के पर्याय हैं। पीला हो जाता है। पत्तियां ६ से० मी० से १६ से० मी० (कैयदेव०नि० ओषधिवर्ग० पृ० २१२) (२.५ इंच से७ इंच) तक लंबी ३७५ से०मी० से ६१२५ से० अन्य भाषाओं में नाममी० (१.५ इंच से २.५ इंच) (१.५ इंच से २.५ इंच) तक हि०-वायविडंग,बायभिडंग बायभिरंग, भाभिरंगाबं०चौडी रूप रेखा में, लट्वाकार, आयताकार, लट्वाकार- विरंग। म०-वायविडंग। गु०-बावडींग। क०-वायुविडंग, आयताकार या अण्डाकार-भालाकार तथा सरल धारवाली बायबिलंग। ते०-वायुविडंघमु। ता०-वायुविलंगमु। प०सोपपत्र एवं एकान्तर क्रम से स्थित होती है। पर्णवृन्त २.५ से० बबरंग, वावरंग। मा०-वायविरंग सिंह०-उंम्बे लिया,अंबेलिया। मी० से ५ से० मी० लंबा तथा ऊर्ध्वतल पर हलखात युक्त और ने०-हिमलचेरी। अ०-वरंजकावली, बिरंजकावुली। फा०उपपत्र ५/४ से० मी० से २५ से. मी० बरंगकाबली, बिरंजकाबली, बिरंगकाबुली।अं०-Babreng (१/२ इंच से १ इंच) तक तथा सूक्ष्म रोमवृत होते हैं, जो fruits of Embelia ribes(बाबरिंग फुट आफ कांडस्कंध तथा अन्य पत्र हीन शाखाओं पर गुच्छों में निकलते एम्बेलिया राइबस्) ले० - Embelia Ribes Burm हैं। कच्चे पर यह हरे तथा पकने पर नारंगी के रंग के हो जाते (एम्बेलिया राइबस्) Fam. Myrsinaceae (मिसिनेसी) हैं। फल सदा लगे रहते हैं इसीलिए इसे सदाफल भी कहते (वनौषधि निदर्शिका पृ० १३६) उंबेभरिया उंबेभरिया () वाय विडंग प० १/३५/२ विमर्श-प्रस्तुत प्रकरण में उंबेभरिया शब्द है। यह संस्कुत भाषा का शब्द नहीं है क्योंकि आयुर्वेदीय कोशों तथा निघण्टुओं में यह शब्द तथा इससे मिलता जुलता कोई शब्द नहीं मिलता है। हिन्दी भाषा में भी इससे मेल खाता कोई शब्द नहीं मिला है। सिंहल भाषा में उंबेलिया और अंबेलिया शब्द मिलता है। उंबेभरिया शब्द में भ को लुप्त कर दें तो उंबेरिया और सिंहली उंबेलिया शब्द की समानता दिखाई देती है। इसी समानता के आधार पर उंबेलिया शब्द को ग्रहण कर रहे हैं। उंबेलिया वायविडंग का वाचक है। वायबिडंग के लिए इन शब्द संग्रह में कोई शब्द नहीं है इसलिए इस शब्द (उंबे भरिया) का अर्थ वायविडंग कर रहे हैं। भाव प्रकार पुष्पव्यूह यमुकुट l उत्पत्तिस्थान-यह मध्य हिमालय से भारतवर्ष के पहाडी भागों में तथा सिलोन से सिंगापुर तक बहुत पाया जाता है। विवरण-हरीतक्यादि वर्ग एवं अपने कुल के प्रमुख इस Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016039
Book TitleJain Agam Vanaspati kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size8 MB
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