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जैन आगम : वनस्पति कोश
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वोयाण
राजस्थान, बलूचिस्तान से इजिप्ट तक नदियों के किनारे
रेतीली जमीन में, बगीचों की बाड़ों तथा खेतों की बाड़ों वोयाण (
भ० २१/२०
के पास रास्तों के किनारे, खेतों के धोरों पर कंकरीली विमर्श-प्रज्ञापना १/४४/१ में वोयाण शब्द के
जमीन में, चरणोट की जगहों पर और सफेद लांप वाले स्थान पर वोडाण शब्द है। इसका अर्थ उपलब्ध निघंटुओं
घास के खेतों में, सड़कों के किनारे बारहों मास मिल तथा शब्दकोशों में नहीं मिला है।
जाती है।
विवरण-यह गुडूच्यादि वर्ग और त्रिवृतकुल का संखमाला
क्षुप होता है। शंखपुष्पी चतुर्मास में बहुत-सी जगहों में संखमाला (शङ्खमाला) शंखपुष्पी
बारहों मास देखी जाती है। इसके क्षुप २ से ६ इंच ऊपर
जीवा० ३/५८२ पं २/- बढ़कर बाद में इसकी शाखाएं जमीन पर छा जाती हैं। विमर्श-संखमाला शब्द अभी तक वनस्पति परक कितनी ही वक्त इसकी शाखायें ४ से ६ इंच ऊपर बढ़कर अर्थ में प्राप्त नहीं हुआ है। शंखमालिनी शब्द मिलता है। जमीन पर और घास में फैल कर लिपटी हुई भी होती संभव है शंखमालिनी शब्द का अर्थ ही शंखमाला शब्द है। कभी यह २ से ४ फीट बढ़कर जमीन पर चारों ओर का हो। इसलिए शंखमालिनी शब्द का अर्थ ही शंखमाला फैलकर इसके छते बनते हैं। पान कुछ लंबे विशेषकर के लिए ग्रहण कर रहे हैं।
के मोटी अणीवाले, फूल सफेद या फीका अथवा गहरे शङ्मालिनी स्त्री। शङ्खपुष्पीलतायाम्
गुलाबी रंग के रकाबी जैसे गोल होते हैं। फल प्रातः काल (वैद्यक शब्द सिन्धु पृ० १०१६) खिलते हैं। फल गोलायी लिए सूक्ष्म अणीवाले होते हैं। शङखमालिनी के पर्यायवाची नाम
इसके क्षुप का रंग धोला या भूरापन लिये हरा दीखता शङ्खपुष्पी सुपुष्पी च, शङ्खाह्वा कम्बुमालिनी। है। यह जहां उगती है वहां विशेषकर खूब उगती है। सितपुष्पी कम्बुपुष्पी, मेध्या वनविलासिनी।।१३१।। मूल सूतली से अंगुली जैसा मोटा और ४ से ६ इंच या चिरिण्टी शङ्खकुसुमा भूलग्ना शङ्खमालिनी। १ से १.५ फुट लंबा होता है। छाल मोटी होती है। मूल इत्येषा शङ्खपुष्पी स्यादुक्ता द्वादशनामभिः ।।१३२।। का आडा काट करके देखने में काष्ठ सछिद्र और सफेद
शपुष्पी, सुपुष्पी, शङ्खाह्वा, कम्बुमालिनी, दीखता है। इस लकड़ी और अन्तर छाल के बीच से दूध सितपुष्पी, कम्बुपुष्पी, मेध्या, वनविलासिनी, चिरिण्टी, जैसा रस निकलता है। गंध तिल के ताजे तेल जैसी और शङ्खकुसुमा, भूलग्ना, शङ्खमालिनी ये सब बारह नाम स्वाद तेलिया, दाहक और चरपरा लगता है। तना और शंखपुष्पी के हैं।
शाखायें सुतली के समान पतली और सफेद वालों की (राज०नि० गुडूच्यादिवर्ग० पृ०५६) रोमावली से भरी हुई होती है। पान एकान्तर होते हैं। अन्य भाषाओं में नाम
ये .५ से १ डेढ़ इंच लंबे और १/४ से .५ इंच चौड़े होते हि०-शंखाहुली, शंखपुष्पी। बं०-शंखाहुली, हैं। पत्र दंड बहुत सूक्ष्म होता है। पान पत्रदंड की ओर डामकली। म०-शंखाहुली, शंखवेली। क०-शंखपुष्पी, तंग तथा सिरे की ओर चौड़े होते हैं। पान मलने से बहुत ययोची, दण्डोत्पल | पोरबंदर और गुजरात०-शंखावली, चिकने लगते हैं। इसमें से मूली के पत्तों की गंध से मिलती संखावली। कच्छी०-मखणवल, अच्छीशंखवल। गंध आती है। स्वाद खारापन लिये चिकना और चरपरा राज०-शंखावली। अंo-Pladera Deccussat (प्लेडेरा होता है। फूल .५ से १ इंच व्यास के होते हैं। पत्र कोण डेक्यूसाटा) ले०-Canscora Deccusata alt (केन्सकोरा के सिरे से मिलती हुई होती है। फल गोलायी लिए सिरे डेक्यूसाटा एल्ट)।
पर कुछ तंग और अणीदार होते हैं। फल भूरे रंग का उत्पत्ति स्थान-भारत में सर्वत्र, विशेषकर गुजरात, ५ इंच लंबा, चिकना और चमकदार दोनों ओर सफेद
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