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जैन आगम : वनस्पति कोश
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चिकने पत्रयुक्त तथा प्रायः रक्ताभ होते हैं। पत्ते बहुत लकुच, क्षुद्रपनस, लिकुच, डहु ये लकुच के लम्बे, क्रमशः पतले चिकने, कोमल, नुकीले, कांडासक्त संस्कृत नाम हैं। (भाव०नि० आम्रादिफलवर्ग० पृ०५५६) तथा आधार पर गोल या तांबूलाकार होते हैं। पत्तों को अन्य भाषाओं में नाममसलने से सुगंध आती है। पुष्प लाल बादामी रंग के हि०-बडहल, बडहर, बरहर, बरहल। बं०-डेओ, पत्रकोश से ढकी हुई विदण्डिक मंजरियां आती हैं। वर्षा मादार, डेलो, डहुया। म०-वोटोंबा। गु०-लकुच । एवं शीतकाल में फूल-फल आते हैं। इसकी पत्तियों से ताo-इलगुसम। ते०-कम्मरेगु। अंo-Monkey jack एक सुगंधित तेल निकाला जाता है। कोमल घास से तेल (मॅकीजॅक)। ले०-Artocarpus Lakoocha Roxb अधिक एवं उत्तम प्रकार का निकलता है। इसका रंग (आर्टोकार्पस् लकूच) Fam. Moraceae (मोरेसी)। फीका ललाई लिये जामुनी रंग का होता है। इसमें गंध उत्पत्ति स्थान-यह गरम प्रान्तों में कुमायुं से पूरब गुलाब जैसी तथा स्वाद में यह अदरख की तरह चरपरा की ओर और दक्षिण में ट्रावनकोर तक तथा अनेक प्रान्तों एवं रुचिकर होता है।
में उत्पन्न होता है। (भाव०नि० गुडूच्यादिवर्ग० पृ०३८३)
विवरण-बडहर का वृक्ष २० से ३० फीट ऊंचा
होता है। इसके पत्ते ५ से १२ इंच लम्बे, २ से ६ इंच लउय
चौड़े, अंडाकृति तथा रुक्ष होते हैं। पुष्प एकलिंगी होते लउय (लकुच) बडहर
हैं। फल गोल गांठदार, २ से ४ इंच व्यास के होते हैं। भ० २२/३ ओ० ६ जीवा० १/७२; ३/५८३ प० १/३६/३ कच्चे में हरे तथा स्वाद में खट्टे और पकने पर मटमैले
पीले रंग के और स्वाद में खट्टे मीठे होते हैं। इनके भीतर कटहर के समान रेशा और बीज होते हैं पर कटहर से छोटे होते हैं। इसलिए इसको क्षुद्रपनस भी कहते हैं। वसंत ऋतु में यह फूलता तथा वर्षा में फलता है। इसके फल को निकृष्टतम बतलाया गया है।
(भाव०नि० आम्रादि फलवर्ग०पृ०५५६)
AAS
KANTA
शारव
लवंगदल लवंगदल (लवङ्गदल) लौंग
रा०२६ जीवा० ३/२८२ विमर्श-प्रस्तुत प्रकरण में श्वेतरंग की उपमा के लिए लवंगदल शब्द का प्रयोग हुआ है। लवङ्ग के पर्यायवाची नाम
लवङ्गं देवकुसुमं, भृङ्गारं, शिखरं लवम्।। दिव्यं चन्दनपुष्पं च, श्रीपुष्पं वारिसंभवम् ।।३६ ।।
लवङ्ग, देवकुसुम, भृङ्गार, शिखर, लव, दिव्य, चन्दनपुष्प, श्रीपुष्प और वारिसंभव ये लवंग के पर्याय हैं।
(धन्व०नि० ३/३६ पृ० १४८, १४६) अन्य भाषाओं में नाम
हि-लोंग, लौंग, लवंग । बं०-लवग | म०-लवग।
फल
पुष्प काट
लकुच के पर्यायवाची नाम
लकुचः क्षुद्रपनसो, लिकुचो डहुरित्यपि।।
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