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जैन आगम : वनस्पति कोश
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उत्पत्ति स्थान-यह दक्षिण अमेरिका का आदिवासी है किन्तु प्रायः सब प्रान्तों में पाया जाता है। दक्षिण में इसे लोग घरों में लगाते हैं।
विमर्श-प्रस्तुत प्रकरण में मोग्गर शब्द गुल्मवर्ग के अन्तर्गत है और जाई, जूहिया, मल्लिया आदि शब्दों के साथ है। इसलिए यहां कर्मरंग (कमरख) का अर्थ ग्रहण न कर मुद्गर का चौथा अर्थ मल्लिका पुष्प भेद अर्थ ग्रहण कर रहे हैं। मुद्गर के पर्यायवाची नाम
मुद्गरो गन्धसारस्तु, सप्तपत्रश्च कर्दमी। वृत्तपुष्पोऽतिगन्धश्च गन्धराजो विटप्रियः । गेयप्रियो जनेष्टश्च, मृगेष्टो रुद्रसम्मितः ।।७७।।
मुद्गर, गन्धसार, सप्तपत्र, कर्दमी, वृत्तपुष्प, अतिगंध, गंधराज, विटप्रिय, गेयप्रिय, जनेष्ट तथा मृगेष्ट ये सब मुद्गर (गन्धराज) के ग्यारह नाम हैं।
(राज.नि. १०/७७ पृ. ३१२)
फलकाट
MPO
विवरण-इसका वृक्ष छोटा एवं करीब १० से २० फीट ऊंचा होता है। इसकी छाल धूसरवर्ण की एवं काष्ठ मुलायम होता है। पत्ते चिकने बड़े, व्यास में ४ से ६ इंच एवं ३ से ५ खंडों में विभक्त होते हैं। पुष्प पीताभ वर्ण के होते हैं। फल हरे रंग के, १ इंच लम्बे एवं सूखने पर भी बहुत दिन तक पेड़ में लगे रहते हैं। इसके बीजों में तैल होता है। इसके पत्तों को तोड़ने से सफेद रंग का बहुत दूध निकलता है।
मोग्गर
अन्य भाषाओं में नाम
हिo-मोगरा, मोतिया, वनमल्लिका । गु०-मोगरो। मोग्गर (मुद्गर) मोगरा, मुद्गर प०१/३८/२
___ बं०-मोगरा, बेला, वनमल्लिका। म०-मोगरा। मुद्गरः पुं। स्वनामख्याते पुष्पवृक्षविशेषे । मल्लिका काठियावाड०-डोलेरा। पं०-मुग्ररा, चंबा। ता०वृक्षेकर्मरंगवृक्षे । मल्लिकापुष्पभेदे ।
अनंगमू। तेo-मले। कर्णाटकी-बल्लिमल्लिगे। (वैद्यक शब्द सिन्धु पृ. ८२६) उर्दू-आजाद, रायबेल, सोसन। अ०-सोसन ।
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