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जैन आगम : वनस्पति कोश
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इसका वृक्ष देखने में आता है, विशेष कर नीची पहाड़ियों में इसके पुराने पत्ते गिर जाते हैं और नवीन पत्ते आते पर अधिक पाया जाता है। यह जंगल, पहाड़ तथा ऊंची रहते हैं, प्रायः उसी समय फूल भी आते हैं। शीतकाल भूमि में उत्पन्न होता है।
के प्रारंभ में उस पर फल लग जाते हैं और अगहन पूस तक पक जाते हैं । वृक्ष से बबूल के गोंद के समान एक प्रकार का गोंद निकलता है। वर्षा के प्रारंभ में छिलके रहित गुठलियों को भूमि पर फेंक देने से ही वे अंकुरित हो पौधे के रूप में परिणत होती हैं।
(भाव०नि० हरीतक्यादिवर्ग० पृ०६,१०)
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बिल्ल बिल्ल (बिल्व) बेल। भ०२२/३ प०१/३६/१
विमर्श-प्रस्तुत प्रकरण में बिल्ल शब्द बहुबीजक वर्ग के अंतर्गत आया है। बेल में अनेक बीज होते हैं। बिल्व के पर्यायवाची नाम
बिल्वः शलाटुः शाण्डिल्यो हृद्यगन्धो महाफलः । शैलूषः श्रीफलाश्चाह्वः, कर्कट: पूतिमारुतः ।।१०६ लक्ष्मीफलो गन्धगर्भः, सत्यकर्मा वरारुहः ।। वातसारोऽरिभेदश्च, कण्टको ह्यसिताननः/१०७।।
बिल्व, शलाटु, शाण्डिल्य, हृद्यगन्ध, महाफल, शैलूष, श्रीफल, कर्कट, पूतिमारुत, लक्ष्मीफल, गन्धगर्भ, सत्यकर्मा वरारुह, वातसार, अरिभेद, कण्टक और
असितानन ये बिल्व के पर्याय हैं। विवरण-वृक्ष बहुत विशाल हुआ करता है। ऊंचाई
(धन्व०नि०१/१०६, १०७ पृ०४७) ६० से १०० फीट तक होती है। स्तंभ मोटा, सीधा, खड़ा, अन्य भाषाओं में नामगोलाकार होता है। छाल आधा इंच तक मोटी, कालापन हि०-बेल, श्रीफल । बं०-बेल। म०-बेल । युक्त, या नीलापन युक्त खाकी रंग की होती है। लकड़ी गु०-बीली। क०-बेलपत्रे। तेo-मारेडु, बिल्वपंडु। हलकी खाकी या किंचित् पीलापन युक्त होती है। शाखायें ता०-बिल्वम, बिल्वपझम। मा०-बील, बोलो। प्रायः ६ से १० फीट लम्बी होती है किन्तु कभी-कभी २० मल०-कुवलप, पंझम। सिन्ध०-बिल, कटोरी। फीट लम्बी शाखायें भी देखने में आती है। पत्ते महुवे के उड़ी-बेलो । अ०-सफर जले हिन्दी। फा०-बेहहिन्दी, पत्तों के समान ३ से - इंच लम्बे तथा २ से ३ इंच चौड़े बल्ल, शुल्ल । अंo-Bengal Quince (बेंगाल क्विन्स) होते हैं। ये विषमवर्ती प्रायः छोटी-छोटी टहनियों के अंत - Bael fruit (बेलफुट)। ले०-Aegle marmelos corr (इगल में सघन रहते हैं। प्रायः पतझड़ में इसके सब पत्ते गिर मार्मेलोस् कॉर) Fam, Rutaceae (रूटसी)। जाते हैं और चैत तक नवीन पत्ते निकल आते हैं। फल उत्पत्ति स्थान-यह आसाम, ब्रह्मा, बंगाल, बिहार, ३ से ६ इंच तक, लम्बी सीकों पर नन्हें फूलों की मंजरियां युक्त प्रांत, अवध, झेलम, मध्य और दक्षिण हिन्दुस्तान आती हैं। ये मैले खाकी या फीके हरे रंग के होते हैं। तथा सीलोन में प्रायः सभी स्थानों में जंगली और बागी फल एक इंच लम्बा, गोल और अंडाकार होता है। पतझड दोनों प्रकार से उत्पन्न होता है।
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