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जैन आगम : वनस्पति कोश
बुशपल । फा०-जौजबूया । अ०-जौज़ बब्वा, जौजुत्तीब। लिए हुए भूरा तथा सिकुडा हुआ दिखलाई पड़ता है और अं0-Nutmeg (नटमेग)। ले०-MyristicaFragrans Houtt भीतर का रंग मैला गुलाबी जिसमें लालिमा लिए भूरेरंग (मायरिस्टिका फ्रेग्रेन्स हाउट) Fam. Myristicaceae के तंतुओं का जाल होता है। इसकी गंध तेज और (मायरिस्टिकॅसी।
स्वाद सुगंधयुक्त कड़वा होता है।
(भाव० नि० कर्पूरादिवर्ग०पृ०२१६,२१७)
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पुत्तंजीवय पुत्तंजीवय (पुत्रजीवक) जियापोता प०१/३५/२ पुत्रजी (श्री) वः (क:) ।। कोलापुरदेशे तन्नाम्ना प्रसिद्ध वृक्षविशेषे (वैद्यक शब्द सिन्धु पृ०६८३)
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उत्पत्ति स्थान-जायफल सुमात्रा, जावा, सिंगापुर, मोलूक्का, पिनांग एवं लंका तथा वेस्ट इंडीज में अधिकता से उत्पन्न होता है। इस देश में इसके वृक्ष से फल पाना कष्ट साध्य है। नीलगिरी पर्वत के पूर्वीय भाग में कनूर की घाटी में बलियार केसरकारी बगीचों में तथा दक्षिण में कोटॅलम् की पहाड़ियों पर इसके पेड़ लगाये गये हैं। विवरण-इसका वृक्ष सेव के समान होता है और
पुष्पकार देखने में बहुत सुहावना हरे रंग का मालूम पड़ता है। पत्ते २ से ५ इंच तक लम्बे, १.५ इंच तक चौड़े चर्मवत्, लम्बे पर्णवृन्त से युक्त, अंडाकार या आयताकार पुत्रजीवक के पर्यायवाची नामभालाकार तथा हल्के पीले भूरे रंग के होते हैं। फूल पुत्रजीवः पवित्रश्च, गर्भदः, सुतजीवकः ।। छोटे-छोटे सफेद रंग के गोलाकार आते हैं। फल गोल कुटजीवोपत्यजीवसिद्धिदोपत्यजीवः ।।१३८ ।। अंडाकार १.५ से २ इंच लम्बे रक्ताभ या पीताभ तथा पकने पुत्रजीव, पवित्र, गर्भद, सुतजीवक, कुटजीव, पर दो फांकों में फट जाते हैं। इनके फटने पर कड़े अपत्यजीव, सिद्धिद अपत्यजीवक ये पुत्रजीवक के नाम आवरण से युक्त जायफल (सखे हए बीज) को घेरे हवे
(राज०नि०६।१३ पृ०२६२) जावित्री का लालवर्ण का वेष्टन दिखाई देता है । जावित्री अन्य भाषाओं में नामके अंदर जायफल रहता है। जायफल अंडाकार, गोल हि०-जियापोता, पितौजिया। बं०-जियापुन्ता। तथा एक इंच के घेरे में होता है। बाहर से यह खाकीपन म०-पुत्रजीव। गु०-पुत्रजीवक। तेल-कुहुरुजीवि ।
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