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प्रकाशकीय
जैन विश्व भारती द्वारा आगम प्रकाशन के क्षेत्र में जो कार्य हो रहा है, वह न केवल मूर्धन्य विद्वानों, साहित्यकारों एवं धर्माचार्यों के लिये उपयोगी है वरन् उससे ही मानवता का कल्याण होना है। आगम-साहित्य जो स्वयं प्राणवान है एवं उसी में वर्तमान युग की समस्याओं के समाधान निहित है। उस आगम की ज्ञान सम्पदा को ढाई हजार वर्ष पुराने ग्रंथों को आधुनिक युग के सन्दर्भ में प्रस्तुत करना - निश्चित ही स्तुत्य एवं बहुमूल्य कार्य है। यह जितना जनोपयोगी है उतना ही दुरूह भी है। लेकिन पूज्य गुरुदेव श्री तुलसी के सान्निध्य, मार्गदर्शन, चिन्तन और प्रोत्साहन का सम्बल पाकर यह दुरूह कार्य संभव हुआ है। अनेक साधु-साध्वियां पूज्य गुरुदेव श्री तुलसी एवं पूज्य आचार्य श्री महाप्रज्ञ के सान्निध्य में अनेक दुस्तर धाराओं को पार पाने में समर्थ हुए हैं।
"जैन आगम : वनस्पति कोश" आगम-प्रकाशन श्रृंखला का नवीन ग्रंथ है। आगमों में वनस्पति के अनेक शब्द एवं उनसे जुड़ा सम्पूर्ण दर्शन है। मुनि श्री श्रीचन्द "कमल" ने अथक परिश्रम करके उन वनस्पति शब्दों का संग्रह किया, उन शब्दों की छाया एवं अर्थ का अन्वेषण किया एवं प्रस्तुत ग्रंथ के रूप में उनका श्रम सामने है।
इस कार्य में श्री झूमरमल बैंगानी का विशेष योगदान रहा। सेवाभावी कल्याण केन्द्र के विभागाध्यक्ष हैं, उन्होंने इस ग्रंथ के तैयार होने में उल्लेखनीय सहयोग किया।
प्रस्तुत ग्रंथ से वनस्पति जगत को समझने में जहां सुविधा मिलेगी, वहीं चिकित्सा के क्षेत्र में भी इसका योगदान रहेगा ।
प्रस्तुत ग्रंथ में अनेक साधुओं की पवित्र अंगुलियों का योगदान रहा है, मुनि श्री दुलहराजजी मुनि श्री धनंजय कुमारजी ने भी अपना योगदान प्रदान किया। मैं इन सभी के प्रति आभार व्यक्त करता हूं।
आशा है, पूर्व प्रकाशनों की भांति यह प्रकाशन भी विद्वानों एवं शोधकर्त्ताओं के लिये अत्यन्त उपयोगी सिद्ध
होगा ।
जैन विश्व भारती, लाडनूं दिनांक 25 फरवरी, 1996
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ताराचन्द रामपुरिया मंत्री
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