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जैन आगम : वनस्पति कोश
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poftoSOPIB
SPICIGERAL
नन्दिवृक्ष के पर्यायवाची नाम
के उपर्युक्त ६ अर्थों में शमीवृक्ष अर्थ ग्रहण किया जा रहा तूणि स्तूणीकण: पीतस्तूणिक: कनकस्तथा। है। क्योंकि छोंकर में अनेक बीज होते हैं। कुठेरकः कान्तलको, नन्दिवृक्षोथ नन्दिकः ।।१७।। अन्य भाषाओं में नाम
तूणीकण, पीततूणिक, कनक, कुठेरक, कान्तलक, हि०-छोंकर, शमी, छिकुर | बं०-शांई। मं०-शमी। नन्दिवृक्ष और नन्दिक ये पर्याय तूणि के हैं। गु०-खीजड़ो, खमडी। ता०-कलिसम्, वण्णि।
(धन्व०नि० ३/१७ पृ० १४१, १४२) मार०-खेजड़ो, जाट, जांटी। कठि०-खेजड़ी। अन्य भाषाओं में नाम
कच्छी-कंडो, समरी। ते०-जिम्म। पं०-जंड, जंडी। हि०-तुन तून, तूनी, महानिम । बं०-तूनगाछ। ले०-Prosopis Spicigera linn (प्रोसोपिस् स्पिसिजेरा) म०-तूणी, कूरक। गु०-तूणी। ता०-तूनमरम्। Fam. Leguminosae (लेग्युमिनासी)। ते०-नन्दिवृक्षमु । कo-बिलिगंधगिरि। अं0-The Toon (दि तून) ।। ले०-Cedrela toona roxb (सेड्रेलातून) Fam. Meliaceae (मेलिएसी)।
(भाव०नि०पृ० ५३५) उत्पत्ति स्थान-यह हिमालय के निचले प्रदेशों में ४००० फीट तक आसाम, बंगाल, छोटा नागपूर, पश्चिमीघाट एवं दक्षिण प्रायद्वीप में होता है।
विवरण-इसका वृक्ष ऊंचा या मध्यम ऊंचाई का ७० से १०० फीट तक होता हैं। पत्ते सदलपर्ण, १ से २.५ फीट लम्बे, पत्रक ५ से १२ जोड़े, भालाकार या आयताकार-भालाकार, ३ से ७ इंच लम्बे, अखण्ड सवन्त तथा तिरछे फलक मूल वाले होते हैं। पुष्प छोटे, सुगंधित तथा नवीन टहनियों पर निकलते हैं। फली १ इंच तक लम्बी आयताकार होती है। बीज दोनों शिराओं पर सपक्ष होते हैं। इसकी लकड़ी फर्नीचर बनाने के काम आती है।
(भाव०नि० वटादिवर्ग०पृ० ५३४)
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CROSS DENROP
णग्गोह णग्गोह (न्यग्रोध) शमी वृक्ष, छोंकर, खेजडी बापत्र
जीवा० १/७२ प० १/३६/१ न्यग्रोध ।पु० । वटवृक्षे, श्रुतश्रेण्याम्, आखुकर्णी उत्पत्ति स्थान-यह पंजाब, सिन्ध राजपुताना, लतायाम् । शमीवृक्ष, विषपाम्, मोहननामौषधौ। गुजरात और बुंदेलखण्ड में अधिक होता है और इसको (वैद्यकशब्द सिन्धु पृ० ६२४)
वाटिकाओं में भी लगाते हैं। विमर्श-प्रस्तुत प्रकरण में णग्गोह शब्द वड शब्द
विवरण-वटादिवर्ग एवं शिम्बी कुल के बब्बुलादि के बाद आया है। बहबीजक वर्ग के अन्तर्गत है। संस्कृत
उपकुल के ये वृक्ष मध्यमाकार के, कंटकित, १५ से ३० शब्दकोशों में न्यग्रोध वट का पर्यायवाची है। वड और फुट ऊंचे होते हैं। शाखायें पतली झुकी हुई, धूसरवर्ण णग्गोह शब्द एक साथ आने के कारण यहां णग्गोह शब्द की, छाल फटी सी, खुरदरी, बाहर से श्वेताभ तथा भीतर
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