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जैन आगम : वनस्पति कोश
और बलराज नामक दो कंदों के विषय में जंगली लोग
जीविय बड़ी प्रशंसा किया करते हैं। संभव है ये ही ऋषभक और
जीविय (जीविका) डोडीशाक प० १/४८/५ जीवक हों। कमराजकंद पर सूक्ष्मपत्र देखने में नहीं आये
देखें जियंतय शब्द। किन्तु गुणधर्म में यह जीवक की बराबरी करता है। कामराजकंद बहुत कुछ रसोन कंदवत् दिखलाई देता
जूहिया बंगाल एशियाटिक सोसायटी के सभापति सर जूहिया (यूथिका) जूही विलियम जोन्स के मत का अनुसरण करते हुए स्वामी
रा० ३० जीवा० ३/२८३ प० १/३८/२ हरिशरणानंद जी लिखते हैं कि ऋषभक और जीवक दोनों यूथिका के पर्यायवाची नामएक ही जाति की वनस्पति है। दोनों ही कंद होते हैं।
यूथिका पीतिका बाला, बालपुष्पा गुणोज्वला।। तथा दोनों ही के कंद के ऊपर छिलका होता है। सिरे
काण्डी शिखण्डिनी चान्या युवती पीतयूथिका /१४७५ की पत्तियों की जड़ के पास से अनेक पुष्पदंड निकलते यूथिका, पीतिका, बाला, बालपुष्पा, गुणोज्वला, हैं, जिस पर सघन फूल आते हैं। फूल कतार में रहते काण्डी और शिखण्डी ये यूथिका के पर्याय हैं। हैं और उनका जुड़ाव नीचे की ओर मिला हुआ होता है।
(कैय०नि० ओषधिवर्ग पृ० ६१६) उनमें विशेषता यह है कि कंद एक ही पर्त में लिपटे नहीं अन्य भाषाओं में नामहोते। पत्तियां लम्बी और चिपटी होती हैं। तथा वे कुछ हि०-जूही। क०-कदरमल्लिगे। ते०-मागधी। तिरछी झुककर डंठल का थोड़ा भाग ढके रहती हैं। जहां ता०-उसिमल्लिगै। ले०-Jasminumauriculatum Vahl ढके हए भाग का अन्त होता है वहां चिकने चमकदार (जसमिनस ऑरी क्यूलेटम्)Fam.Oleaceae (ओलिएसी)। और कोमल तने निकलते हैं, जिन पर छोटे-छोटे सफेद उत्पत्ति स्थान-यह दक्षिण कर्नाटक तथा पश्चिम रंग के फूलों के गुच्छे लगते हैं। जिस तरह लहसुन या प्रायद्वीप में होती है। भारत के सभी स्थानों पर इसकी प्याज में बुरी गंध आती है वैसी दोनों में किसी प्रकार खेती होती है। उत्तरप्रदेश में तो व्यापारिक दृष्टिकोण से की बुरी गंध नहीं आती। दोनों कंद चेपदार गूदे से भरे इसकी खेती करते हैं। होते हैं। स्वाद किंचित् कड़वापन युक्त मीठा होता है और विवरण-इसका गुल्म मृदुरोमश, लता के समान बाजार में मिलने वाली उसी श्रेणी की साधारण वनस्पति आरोहणशील या फैला हुआ रहता है। पत्ते प्रायः साधारण के कंद से इनका कंद बहुत छोटा होता है। दोनों पौधे । कभी-कभी त्रिपत्रक जिसमें दो नीचे के पत्रक बहुत छोटे समुद्र की सतह से ४५०० से १०००० फुट ऊंची हिमालय या कभी-कभी अनुपस्थित बीच का पत्रक २ से ३.२४१ की चोटियों पर पाये जाते हैं। और वे वहां के जंगल या से १५ से.मि चौड़ाई लिये हुए अण्डाकार या गोल खुली जमीन में उत्पन्न होते हैं।
मृदुरोमश या चिकना होता है। पुष्प श्वेत, सुगंधित, गुच्छो इन दोनों के पत्ते वर्षाकाल में जब नवीन फूटते में आते हैं। बाह्यदल नलिका ४ मि.मी. लम्बी तथा दन्तुर हैं तो ये अच्छे चौड़े, लगभग एक इंच चौड़े होते हैं। फिर एवं अन्तर्दलनलिका १३ मि.मि. लम्बी तथा उसके खण्ड पौधों के खूब बढ़ जाने पर शरदऋतु में ये पतले हो जाते ५ से ८ एवं ६ मि.मी. लम्बे होते हैं। (भाव० नि० पृ० ४६२,४६३) हैं। शीतलता (सरसता) गुण के कारण कंद को शरद विमर्श-प्रस्तुत प्रकरण में जूही गुल्म होती शब्द में संग्रह करना होता था, उस समय पतले पत्तों का होना गुल्मवर्ग के अन्तर्गत है। जूहियागुल्म है। अवश्य देखा गया होगा। ऐसा स्वामी जी ने अनुमान किया है।
जूहियागुम्म (धन्वन्तरि वनौषधि विशेषांक भाग १ पृ० ५३२)
२ जूहियागुम्म (यूथिकागुल्म) जूही का गुल्म
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