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जैन आगम : वनरपति कोश
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(कोरिएण्ड्रम सॅटिवम् लिन) Umbelliferae (अंबेलि फेरी)।
कोविदार और श्वेतपुष्प की जाति कांचनार है।
(धन्व०नि० पृ०७४) अन्य भाषाओं में नाम
हि०-कोविदार, खैखरवाल, सोना। बं०देवकांचन, रक्तकाञ्चन। संथा-सिंहरा। ता०-मंदारि, पेद्दाआरिते०-कांचनम् । ले०-Bauhiniapurpurealinn (बौहिनिआ पर्युरिआ लिन०)।
फली
उत्पत्ति स्थान-इस देश के प्रायः सब प्रान्तों में एवं विदेशों में भी इसकी उपज होती है।
विवरण-इसका पौधा १ से २ फुट ऊंचा, शाखायें चिकनी, पत्ते विषमवर्ती, जड़ के निकट वाले पत्ते गोलाकार, ३-४ या ५ भागों में विभक्त. प्रत्येक भाग कटे किनारे वाले और कंगूरेदार तथा शाखाओं के पत्ते सोआ, चनसुल आदि के पत्तों के समान होते हैं। फूल छत्ते से सोया के फूल के समान सफेद या किंचित् गुलाबी रंग के आते हैं। फल नन्हें-नन्हें, अंडाकार, गुच्छों में छत्राकार लगते हैं। सूखने पर वे दो टुकड़े होकर धनिये के नाम से बिकते हैं। (भाव० नि० हरीतक्यादिवर्ग पृ० ३४)
कुद्दाल कुद्दाल (कुद्दाल) कोविदार
जं २/ कुद्दाल के पर्यायवाची नान
कोविदारश्च मरिकः, कुद्दालो युगपत्रकः ।। कुण्डली ताम्रपुष्पश्चाश्मतकः स्वल्पकेशरी ।।१०२।।
कोविदार, मरिक, कुद्दाल, युगपत्रक, कुण्डली, ताम्रपुष्प अश्मन्तक और स्वल्पकेशरी ये सब कोविदार के संस्कृतनाम हैं। (भाव० नि० गुडूच्यादि वर्ग पृ० ३३७)
विमर्श-पुष्प के आधार पर कोविदार और कांचनार को पृथक् किया गया है। रक्तपुष्प की जाति
विवरण-इसके वृक्ष मध्यम ऊंचाई के होते हैं। ये छोटे रहने पर ही फूलने फलने लगते हैं। पत्ते बहुत गहराई तक कटे हुए आयताकार ५ से ७ इंच लम्बे, खण्ड के अग्र प्रायः कोणीय एवं पत्र सिराएं ६ से ११ रहती है। पुष्पकलिका गहरे हरे या भूरे रंग की एवं पांच कोणों से युक्त होती है। पुष्प कांचनार की अपेक्षा छोटे पांच दलपत्रों से युक्त चमकीले बैंगनी नीलारुण या गहरे गुलाबी रंग के होते हैं। काचनार तथा कोविदार दोनों में बाह्यनाल लम्बा और पूर्ण, पुंकेशर ३ से ५ होते हैं। फली लम्बी हरिताभ बैंगनी रंग की होती है। इसकी जड़ विषैली होती है।
(भाव० नि० पृ० ३३८) इसके पत्ते को घृत, भुनकर खाने से बुद्धि बढ़ती है। इसके पुष्प अधिकतर साग बनाने के काम में लाये जाते हैं। यह पुष्प शाकों में स्वादिष्ट है।
(धन्वन्तरि वनौषधि विशेषांक भाग २ पृ० २६)
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