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________________ ( 91 ) गति ५१ जाति के देव, ८६ प्रकार के युगलिये तथा ३ नारकी (पांचवीं, छट्ठी-सातवीं ) के पर्याप्त । एवं ( १७६ + १४० = ३१६ ) ५१ जाति के देव, ८६ युगलिये, ३ नारकी ( पांचवीं, छट्ठी, सातवीं) के पर्याप्त अपर्याप्त २८० तथा १७९ लड़ीका एवं ४५६ नीललेशी जीव आगति नीललेशी में उत्पन्न ३१६ १७६ लड़ीका, ५१ प्रकार के देव, हो तो ८६ युगलिये, ३ नारकी (तीसरी, चौथी, पांचवीं) के पर्याप्त गति ऊपरवत्, नारकी तीसरी, चौथी, ४५६ पांचवीं कापोतलेशी जीव गति ऊपरवत् परन्तु नारकी पहली, कापोतलेशी में उत्पन्न ३१६ दूसरी व तीसरी हो तो गति ऊपरवत् परन्तु नारकी पहली से ४५६ तीसरी तक आगति गति तेजोलेशी जीव १९०-६४ गति के देव ३४३-१०१ संज्ञी तेजोलेशी में ८६ युगलिये के पर्याप्त मनुष्य, ५ संज्ञी तियंच उत्पन्न हो तो और १५ कर्म भुभिज पंचेन्द्रिय ६४ गति के२ मनुष्य, ५ संज्ञी तिर्यच देव के पर्याप्त अपर्याप्त व पंचेन्द्रिय के पर्याप्त-अपर्याप्त पृथ्वी-अप वनस्पतिकाय एवं १९० के अपर्याप्त एवं ३४३ १. ५१ जाति के देव, १० भवनपति, १५ परमाधामी, १६ वाणव्यंतर १० तिर्यक जृम्भक एवं ५१ ८६ युगलिये--३० अकर्मभूमिज व ५६ अंतीपज, एवं ८६ . २. ६४ जाति के देव, १० भवनपति, १५ परमाधामी, १६ वाणव्यंतर, १० तिर्यक जूम्भक, १० ज्योतिषी, सौधर्म-ईशान देव; १ किल्विषी, एवं ६४ जाति के देव Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016038
Book TitleLeshya kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year2001
Total Pages740
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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