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अग्निकायिक जीचों में
१-सबसे न्यून कापोतलेशी अग्निकायिक जीव, उनसे नीललेशी विशेषाधिक, तथा उनसे कृष्णलेशी विशेषाधिक है। वायुकायिक जीवों में
वायुकाधिक जीवों की अल्पबहत्व अग्निकायिक जीवों की तरह जानना चाहिए। वनस्पतिकायिक जीवों में
सलेशी वनस्पति जीवों में अल्पबहुत्व औधिक सलेशी एकेन्द्रिय जीवों की तरह जानना चाहिए। द्वीन्द्रिय-त्रीन्द्रिय-चतुरिन्द्रिय जीवों में
सलेशी द्वीन्द्रिय, श्रीन्द्रिय तथा चतुरिन्द्रिय जीवों के अपने-अपने अल्पबहुत्व अग्निकायिक जीवों की तरह जानना चाहिए । पंचेन्द्रिय तिर्यश्चयोनिक जीवों में__ सबसे कम शुक्ललेशी जीव है, उनसे पद्मलेशी जीव संख्यातगुणे, उनसे तेजोलेशी जीव संख्यातगुणे, उनसे कापोतलेशी जीव असंख्यातगुणे, उनसे नीललेश्या वाले जीव विशेषाधिक, उनसे कृष्णलेश्या वाले जीव विशेषाधिक है। मनुष्यों में__पंचेन्द्रिय तियंचयोनिक की तरह अल्पबहुत्व जानना चाहिए । देवों में
शुक्ललेशी देव सबसे कम, उनसे पद्मलेशी असंख्यातगुणे, उनसे कापोतलेशी असंख्यातगुणे, उनसे नीललेशी विशेषाधिक, उनसे कृष्णलेशी विशेषाधिक, उनसे तेजोलेशी देव संख्यातगुणे होते हैं।
अलेशी से सलेशी जीव अनंतगुणे होते हैं । अलेशी में चौदहवें गणस्थान वाले व सिद्धों का समावेश है। फिर भी अलेशी अनंत हैं ।
चूकि लेश्या के द्रव्य और भाव दो प्रकार हैं। यहां द्रव्यलेश्या व भावलेश्या का सामान्यतः दिगदर्शन कराया जाता है।
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