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________________ ( 73 ) ३ - संसार भावना के द्वारा शालिभद्र ने संयम ग्रहण किया । ४ - एकत्व भावना के द्वारा नमिराजर्षि ने संयम ग्रहण किया । ५--अन्यत्व भावना के मृधा पुत्र ने संयम ग्रहण किया । ६ - अशुचि भावना से सनतकुमार चक्रवर्ती ने संयम ग्रहण किया । ७ - आस्रव भावना से इलायमी पुत्र ने अपना कल्याण किया । ८- संवर भावना से हरिकेशी ने जीवन सुधारा । ६ - निर्जरा भावना से अजुल माली ने अपना कार्य सिद्ध किया । १० - लोक भावना से शिवराजर्षि ने अपना जीवन कल्याण किया । ११ - जोधिदुर्लभ भावना से ऋषभदेव के अठानवें पुत्रों ने कल्याण किया । १२ – धर्म भावना से धर्मघोष आचार्य के शिष्य धर्मरूचि अणगार सर्वार्थ सिद्ध में उत्पन्न हुए । णो इंदियग्गेज्म अमुत्तभावा । अमुत्त भावा वि य होइ णिच्चो ॥ - उत्त० अ १४ । गा १६ पूर्वार्ध जीव व आत्मा निराकार है-अरूपी है अतः इन्द्रियों द्वारा इसका बोध नहीं हो सकता है, न इसमें रंग है, न गन्ध है, न स्वाद है और न स्पर्श है और निराकार होने से ही इसका ( जीव का ) अविनाशी होना निश्चित है । गाणं च दसणं चेव, चरितं च तवो तहा । वीरियं उवओगो य एवं जीवरस लक्खणं ॥ Jain Education International ज्ञान, दर्शन, चारित्र, तप, वीर्य और उपयोग — ये जीव के विशिष्ट लक्षण है । - उत्त० अ २८ । गा ११ धम्मो मंगलमुक्किट्ठ । — दशवे० अ १ । गा १ पूर्वार्ध धर्म सर्व प्रकार के मांगलिक कार्यों में श्रेष्ठ है । मांगलिक कार्य- (१) शुद्ध मांगलिक, (२) अमांगलिक, (३) चमत्कार मांगलिक, (४) क्षय मांगलिक व (५) सदा मांगलिक । धर्म के तीन भेद या रूप कहे गये हैं-अहिंसा, संयम तथा तप । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016038
Book TitleLeshya kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year2001
Total Pages740
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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