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लेश्या-कोश पुद्गल कोश 'प्रथम खण्ड' का मैं हृदय से स्वागत करता हूँ। और अग्निम खण्ड के उत्तम रूप में सामने आने की प्रतीक्षा ।
-श्रीचन्द रामपुरिया
कुलपति-जैन विश्व भारती जैन दर्शन गहन-गहनतम एवं गम्भीर-गभीरतम है। उसकी गहराई पारावार से भी अपरम्पार है। आगम उदधि की अतल गहराइयों में अनगिन अनर्थ्य रत्नों का भण्डारण है। उन रत्नों का चयन कोई कुशल गोताखोर ही करता है । सतह पर बैठने वाला नहीं।
"जिन खोजा तिन पाइया, गहरे पानी पैठ । मैं चपुरा बूड़न डरा, रहा किनारे बैठ ।।"
जैन दर्शन समिति के संस्थापक स्व० मोहनलालजी बांठिया (बी० कॉम ) की अन्तःकरण की जिज्ञासा को गहन गम्भीर जैनागम महासमन्दर को अवगाहित करने की अभिप्रेरणा की। जिज्ञासु मानस अनन्य उत्साह और पुरुषार्थ के साथ सार्थक तलाश में उतर पड़ा अतल गहराइयों में । जैसे-जैसे श्रुतसागर का अवगाहन किया वैसे-वैसे अनर्थ्य रत्नों की उपलब्धि होती गई। चयनित रत्नों की अलग-अलग मालाओं में पिरोता गया।
उसकी निष्पत्ति के रूप में कुछ कोशों का निर्माण हुआ-(१) लेश्या कोश (प्रथम भाग) (२) क्रिया कोश, (३) जैन शब्द कोश, (४) योग कोश (खंड १, २), (५) वर्धमान जीवन कोश (खंड १, २, ३), (६) मिथ्यात्वी का आध्यात्मिक (कोश) विकास आदि प्रकाशित हो चुके हैं।
वे स्वयं सतत अध्यवसायी, अध्ययनशील, कुशाग्नमेधावी एवं ग्रहणशील व्यक्तित्व के धनी थे। वैसे ही उन्हें अपने जीवनकाल में योग्य सहयोगी। उत्तर साधक के रूप में न्यायतीर्थ द्वय श्री श्रीचन्द चोरडिया मिले । जो निरन्तर उनके साथ दायें हाथ की तरह सहयोगिता निभाते रहे और आज भी उनकी अनुपस्थिति में अधूरे कोशों का सम्पादन करने के लिए अनवरत प्रयत्नरत है। ___न्यायतीर्थ द्वय' द्वारा सद्य सम्पादित 'पुद्गलकोश' अत्यन्त महत्वपूर्ण है । जो आधुनिक अनुसंधान कर्ताओं के लिए अत्यन्त उपयोगी होगा, ऐसा मेरा विश्वास है। सृष्टि सर्जन का मौलिक आधार बिन्दु पुद्गल है। यह सादृश्य जगत् पौद्गलिक पिंड ही तो है। हमारे चर्म चक्षुओं का विषय पुद्गल स्कंध ही है। संसारी प्राणी का पुद्गल के बिना काम नहीं चल सकता। उसे
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