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लेश्या-कोश
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वरदान सिद्ध होगा, ऐसा मेरा आत्म-विश्वास है। वर्धमान जीवन कोश' का प्रथम खण्ड भी उपादेय सिद्ध हुआ था। यद्यपि सामान्यतया लोग कोश निर्माण के कार्य को महत्ता की दृष्टि से नहीं देखते, परन्तु मेरा विचार है कि मौलिक चिन्तनमूलक ग्रन्थ लेखन उतना वैदुष्यपूर्ण और श्रमसाध्य नहीं है, जितना कि कोश संग्रहीत करना । मैं ऐसे ग्रन्थों का हृदय से स्वागत किया करता हूँ।
शिवस्ते पन्थाः
-मुनि चन्द्रप्रभसागर प्रस्तुत समीक्ष्य ग्रन्थ वर्धमान जीवन कोश" का द्वितीय खण्ड अपने आप में अनुठा और अद्वितीय है। महावीर जीवन सम्बन्धी सन्दर्भ ग्रन्थ में सम्पादक द्वय का भगीरथ प्रयत्न और गम्भीर अध्ययन प्रतिबिम्बित हो रहा है। आगमों में यत्र-तत्र बिखरी सामग्नी को एकत्र कर इस तरीके से सजाया है कि शोधविद्यार्थियों के लिए बड़ी सुगमता कर दी है। प्रस्तुत नन्थ के संकलन-सम्पादन में शताधिक ग्रन्थों का उपयोग सम्पादक की एगगाचित्तोभविस्सामित्ति' एकाग्न चित्तता का अववोधक है।
आगम-सिन्धु का अवगाहन कर अनमोल मोतियों के प्रस्तुतीकरण का यह प्रयास सचमुच महनीय और प्रशस्य है।
-हीरालाल सुराणा जन आगमों और प्राचीन ग्रन्थों के आधार पर इसका संकलन किया गया है। इसमें संकलन कर्ता को अध्ययन, रचि, धृति और परिश्रम को एक साथ उजागर होने का अवसर मिला है।
साधारण पाठकों के लिए इस नन्थ का बहुत बड़ा उपयोग नहीं हो सकता। किन्तु जो विद्वान् भगवान महावीर के जीवन के संदर्भ में विशेष रूप से जिज्ञासु और संधित्सु है उनके लिए यह नन्थ माला का प्रकाश स्तम्भ का काम करने वाली है। विद्वान लोग इस ग्रन्थ माला सलक्ष्य उपयोग कर स्व० बांठिया और श्री चोरड़िया के श्रम को सार्थक ही नहीं करेंगे, अपने शोध कार्य में उपस्थित अनेक समस्याओं का समाधान भी पा सकेंगे-ऐसा विश्वास है।
-आचार्य तुलसी
चुरु, २६ मार्च ,१९८४ इसमें भगवान महावीर के पूर्व भव ( २७ भव अथवा ३३ भव ) गणधरवाद का हृदयनाही विवेचन है।
-चन्द्रशेखर सूरि
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