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लेश्या - कोश
किये हैं | प्रतीत होता है कि सम्पादकों ने जितना भी लेश्या के सम्बन्ध में श्वेताम्बर साहित्य में उपलब्ध हो सका सबका आलोड़न कर इसके सम्पादन में बड़ा ही परिश्रम किया है । इस लेश्या कोश को प्रकाश में लाने का उद्देश्य जिनागम के अलग-अलग विषयों पर शोध करने वाले विद्वानों के लिये एक जगह उस सामग्री का संग्रह कर उन्हें सुविधा देना है । किन्तु इस प्रकार के ग्रन्थों के सम्पादन से केवल रिसर्च करने वालों को ही नहीं अपितु — स्वाध्याय करने वालों के लिये भी बहुत लाभप्रद होगा - ऐसा मेरा विश्वास है ।
प्रस्तुत लेश्या कोश को प्रकाश में लाने में सम्पादकों व प्रकाशकों का परिश्रम सब तरह से सराहनीय है ।
प्रत्येक ग्रन्थमाला व शास्त्र भण्डारों में इस कोश का रहना आवश्यक है । ग्रन्थ का सम्पादन ठीक तरह से हुआ है और प्रकाशन, कागज आदि बहुत सुन्दर है इसके लिये सम्पादक व प्रकाशक बधाई के पात्र है ।
- महेन्द्र कुमार "महेश" शास्त्री
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६ "श्रमण " वाराणसी - फरवरी ६६ के अंक में
समीक्ष्य पुस्तक "लेश्या कोश" में लेखक द्वय ने बड़ी विशदता, सजगता एवं सफलता से जैन वाङ्गमय में निहित लेश्या - सम्बन्धी विभिन्न सामग्रियों का संचयन प्रस्तुत किया है, जो लेखकद्वय की सूक्ष्म शोध-वृति एवं ज्ञान बोध विस्तृति का ही परिचायक है |
जैन दर्शनानुसार लेश्या शाश्वत भाव और अनानुपूर्वी है, क्योंकि लोक, अलोक, ज्ञानादि भाव के समान यह भी चिरन्तन है और इन भावों के साथ लेश्या का आगे-पीछे का कोई निर्धारित क्रम भी नहीं है । लेश्या के सहयोग से ही कर्म आत्मा में लिप्त होते हैं तथा कृष्णादि द्रव्यों का सान्निध्य पाकर यह आत्मा के परिणाम को भी उसी रूप में परिवर्तित कर देता है । इसके प्रमुखतः दो भेद ( भाव एवं द्रव्य ) एवं कई प्रभेद-उपभेद हैं, जिनके सम्बन्ध में विस्तार के साथ प्रस्तुत पुस्तक में वर्णन किया गया है। साथ ही साथ योग, ध्यान आदि के साथ लेश्या का तुलनात्मक विवेचन भी किया गया है, जो विषय को और अधिक स्पष्ट करने में सहायक है ।
प्रस्तुत पुस्तक की सामग्रियों के संचयन- संघटन में ३२ श्वेताम्बरीय आगमों एवं तत्त्वार्थ सूत्र का सहारा लिया गया है और इनमें उपलब्ध लेश्या सम्बन्धी विभिन्न पाठों को भी मिलान करने का अच्छा प्रयास किया गया है। प्रमुख
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