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लेश्या-कोश
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लेश्या कोश, प्रथम खण्ड पर सम्मति
पत्र-पत्रिकाओं में समीक्षा १ "सन्मति संदेश' दिल्ली-जनवरी ६६ के अंक में
प्रस्तुत ग्रन्थ में लेश्याओं के सम्बन्ध में सांगोपांग विवेचन प्रस्तुत किया है। जैन धर्म में लेश्याओं का महत्वपूर्ण स्थान है। इनमें से द्रव्य लेश्या शरीर के वर्ण को कहते हैं तथा भावलेश्या कषायों के तीव्र, तीव्रतम, तीव्रतर, मन्द, मन्दतर, मन्दतम परिणामों को कहते हैं। जैन ग्रन्थों में इनका यत्र-तत्र विशद विवेचन है किन्तु सर्वाङ्गपूर्ण विवेचन एकत्र नहीं मिलता है। अतएव विद्वान सम्पादकों ने अपने अथक परिश्रमपूर्वक श्वेताम्बर जिनागमों से इसका महत्वपूर्ण संकलन किया है। दिगम्बर आगमों से भी संकलन करने का उनका अपना विचार है। इसमें विषय, शब्द विवेचन, द्रव्यलेश्या, सलेशी जीव, लेश्या और विविध विषय, फुटकर पाठ आदि विविध अंगों पर विस्तृत विचार किया है। इस विषय पर एकत्र समीकरण करने का यह प्रथम प्रयास श्लाघनीय है। २ "अनेकान्त' दिल्ली-अक्टूबर १९६८ के अंक में
बांठियाजी ने जन विषय कोश नन्थमाला स्थापित की है। उसका यह प्रथम पुष्प है जिसमें आपने दशमलव प्रणाली से जैन विषयों का वर्गीकरण करके इस लेश्या कोश की रचना की है। आगमों में लेश्या के सम्बन्ध में जो कुछ भी कहा गया है, उसका विषयवार संकलित किया गया है। जहाँ तक मुझको मालूम है किसी जैन विषय पर इस तरह का यह कोश प्रथम बार ही प्रकाशित हुआ है। इस तरह के कोश निर्माण हो जाने पर जैन दर्शन के अध्ययन में विशेष सुविधा हो जायेगी। सम्पादक द्वय का यह प्रयत्न अभिनन्दनीय है । ३ "जैन संदेश" मथुरा-दिनांक १४-११-१९६८ के अंक में - श्री बांठियाजी ने जैन विषय कोश ग्रन्थमाला स्थापित की है। उसका यह पुष्प आपने दशमलव प्रणाली से जन विषयों का वर्गीकरण करके तदनुसार ही इस लेश्या कोश की रचना की है। आगमों में लेश्या के सम्बन्ध में जो कुछ भी कहा गया है, विषयवार उसको कोश रूप में संकलित किया गया है।
प्रस्तुत विषय पर आगमिक वचनों के साथ उनका शाब्दिक अर्थ भी दे दिया गया है। जहाँ आवश्यकता समझी गई है वहाँ विवेचनात्मक अर्थ भी किया है। किसी जन विषय पर इस तरह का यह कोश प्रथम बार ही प्रकाशित हुआ है।
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