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लेश्या - कोश
४८१
"कर्मनिस्यन्दो लेश्येति सा च द्रव्यभावभेदात द्विघा, तत्र द्रव्यलेश्या कृष्णादिद्रव्याण्येव, भावलेश्या तु तज्जन्यो जीवपरिणाम इति ।"
"लिश्यते प्राणी कर्मणा यया सा लेश्या ।" यदाह - " श्लेष इव वर्णबन्धस्य कर्मबंधस्थितिविधात्र्यः । ”
- अभयदेवसूरि ( देखो ' ०५ ०५३१ ) अष्टानामपि कर्मणां शास्त्रे विपाका वर्ण्यन्ते, न च कस्यापि कर्म्मणो लेश्यारूपो विपाक उपदर्शितः ।
- मलयगिरि ( देखो ०५३२ )
यद्यपि लेश्या कर्मनिष्यंदन रूप है तो भी अष्टकर्मों के विपाकों के वर्णन में आगमों में कहीं लेश्यारूपी विपाक का वर्णन नहीं है !
लेश्यास्तु येषां भंते कपाय निष्यन्दो लेश्याः तन्मतेन कषायमोहनीयोदयजत्वाद् औदयिक्यः यन्मतेन तु योगपरिणामो लेश्याः तदभिप्रायेण योगत्रयजनककर्मोदयप्रभवाः येषां त्वष्टकर्मपरिणामो लेश्यास्तन्मतेन संसारित्वासिद्धत्ववद् अष्टप्रकारकर्मोदयजा इति ॥
- चतुर्थ कर्मगा ६६ | टीका
"
जिनके मत में लेश्या कषायनिष्यंद रूप है उनके अनुसार लेश्या कषायमोहनीय कर्म के उदय जन्य औदयिकी भाव है । जिनके मत में लेश्या योग परिणाम रूप है उनके अनुसार जो कर्म तीनों योगों के जनक हैं वह उन कर्मों के उदय से उत्पन्न होनेवाली है । जिनके मत में लेश्या आठों कर्मों के परिणाम रूप है उनके मतानुसार वह संसारित्व तथा असिद्धत्व की तरह अष्ट प्रकार के कर्मोदय से उत्पन्न होनेवाली है ।
कई आचार्यों का कथन है कि लेश्या कर्मबंधन का कारण भी है, निर्जरा का भी । कौन लेश्या कब बंधन का कारण तथा कब निर्जरा का कारण होती है, यह विवेचनीय प्रश्न है ।
६६३३ लेश्या और अध्यवसाय
लेश्या और अध्यवसाय का घनिष्ठ सम्बन्ध मालूम पड़ता है; क्योंकि जातिस्मरण आदि ज्ञानों की प्राप्ति में अध्यवसायों के शुभतर होने के साथ लेश्या
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