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लेश्या-कोश स्वभाव के, हमारी रंगीन अभिरूचि इस बात को प्रमाणित करती है। अव्यवस्थित चित्त ( भावचित्त ) वाला, संघर्ष प्रिय, स्वार्थी तथा घमण्डी होता है ।
शुद्ध काले रंग की प्रधानता से चित्त के क्लेशों को एक-एक करके शुभ शांत कर दिया जाता है। प्रत्येक रंग हमारे शारीरिक स्वास्थ्य और मनोभावइन दोनों को प्रभावित करता है। रंगों के ध्यान से हम लेश्या को प्रशस्त बना सकते हैं।
जीवपरिणामी का दस भेद कह्या छै x x x ॥४६।। लेस परिणामी में लेश्या कही छव xxx ॥४६।।
.-झीणीचरचा ढाल १३ .. जीव परिणाम के दस भेद हैं । उनमें लेश्या परिणाम में छः लेश्याए हैं। ते जीव-परिणामी रा दश बोलां में, लेस परिणामी में आवे रे ॥६४।।
-झीणीचरचा ढाल १३ वे (भावलेश्याए) जीव परिणाम के एक भेद लेश्या-परिणाम के अंतर्गत है । दर्शन मोहनीय-सम्यग्दृष्टि से विकृत करने वाले कर्म पुद्गल ।
१-सम्यक्त्व वेदनीय-औपशमिक व क्षायिक सम्यग्दृष्टि के प्रतिबंधक कर्मपुद्गल ।
२-मिथ्यात्व वेदनीय-सम्यग्दृष्टि (क्षायोपशमिक) के प्रतिबंधक कर्मपुद्गल ।
३--मिश्र वेदनीय-तत्त्व श्रद्धा की दोलायमान दशा उत्पन्न करने वाले कर्मपुद्गल ।
विश्रेणी स्थित जन्म स्थान की प्राप्ति का हेतुभूत कर्म आनुपूर्वी नाम है। जिसके उदय से जीव की चाल पर प्रभाव पड़ता है-विहायगति नाम कर्म कहलाता है। कहा है__ (असोच्चाणं भंते ! ) अण्णया कयावि सुभेणं अज्झवसाणेणं, सुभेणं परिणामेणं, लेस्साहिं विसुज्झमाणीहिं x x x विभंगे नामं अण्णाण समुप्पज्जई।
-भग० शह । उ ३१ । सू ३३
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