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लेश्या-कोश
४५१ वि। वालुयप्पभाए पुच्छा, गोयमा! दो लेस्साओ पन्नत्ताओ, तं जहा-नीललेस्सा य काउलेस्सा य ; x x x पंकप्पभाए पुच्छा, एका नीललेस्सा पन्नत्ता; धूमप्पभाए पुच्छा, गोयमा! दो लेस्साओ पन्नत्ताओ, तं जहा-कण्हलेस्सा य नीललेस्सा य ; x x x तमाए पुच्छा, गोयमा! एका कण्हलेस्सा ; अहेसत्तमाए एक्का परमकण्हलेस्सा ।
-जीवा० प्रति ३ । उ २ ( नरक ) । सू ८८ । पृ० १४१
नारकियों के नरकावास के वर्णों, शरीर के वर्णों तथा लेश्या का तुलनात्मक चार्ट । नरकावास
शरीर
लेश्या रत्नप्रभापृथ्वी काला-कालावभास-परमकृष्ण काला-कालावभास-परमकृष्ण कापोत शर्कराप्रभापृथ्वी बालुकाप्रभापृथ्वी
कापोत, नील पंकप्रभापृथ्वी
नील धूमप्रभापृथ्वी
नील, कृष्ण तमप्रभापृथ्वी
कृष्ण तमतमाप्रभापृथ्वी
परमकृष्ण
"१६१५ लेश्या-साधक-बाधक
शिव-साधक सुविचार, उपसम क्षायक भाव फुन । क्षयोपसम अवधार, शिव बाधक उदय भाव छै॥ छेली लेश्या तीन, शिव-साधक-बाधक बिहु । भाव उदे मुकथीन, क्षायक क्षयोपशम भाव फुन ।। उदय भाव किण न्याय, क्षायक क्षयोपशम भाव फुन । ते किण विध कहिवाय, न्याय कहू छू तेहनों ॥ त्रिहु शुभलेश्या ताय, पुन्य बंधै छै तेहथी। शिव-बन्धक इण न्याय, उदय भाव इण न्याय फुन । तेजू पदम सुसाव, कर्म कटे छै तेह थी। कही क्षयोपशम भाव, शिवसाधक इण कारणे ॥
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