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________________ लेश्या-कोश द्रव्य साचिव्यात् परिणामो य आत्मनः । स्फटिकस्येव तत्रायं, लेश्याशब्दः प्रयुज्यते ॥१।। एताः कर्मोदयायत्ता इति गाथार्थ । __(ख) तदेतञ्चतुर्विधमार्त कृष्णनीलकापोतलेश्याबलाधानम् xxx -राज० अ ६ । सू ३३ (ग) x x x तदेतदात नातिसंक्लिष्टकापोतनीलकृष्णलेश्यानुयायि द्रष्टव्यमिति । -सिद्ध० अ६ । सू ३५ (घ) कृष्णनीलाद्यसल्लेश्याबलेन प्रविजृम्भते । इदं दुरितदावाचिःप्रसूतेरिन्धनोपमं ।। -ज्ञान० प्रक २५ । श्लो ४० (ङ) आर्तध्यानं x x x कृष्णनीलकापोतलेश्यता । –योश० प्रका ४ । श्लो ७८ । टीका में आर्तध्यान में उपगत जीवों में नातिसंक्लिष्ट परिणामवाली कापोत, नील, कृष्ण लेश्याएं होती हैं। यह रौद्रध्यान में उपगत जीवों के लेश्या परिणामों की अपेक्षा कथन है अर्थात् रौद्रध्यान में उपगत जीव की अपेक्षा आर्तध्यान में उपगत जीव की अपेक्षा आर्तध्यान में उपगत जीव के लेश्या परिणाम कम संक्लिष्ट होते हैं। ज्ञानाणर्व में आचार्य शुभचन्द्र ने कहा है-यह आर्तध्यान कृष्ण, नील, कापोत-इन अशुभ लेश्याओं के बल से प्रगट होता है तथा पापरूपी दावाग्नि के उत्पन्न करने को इन्धन के समान हैं । '६५.४ ध्यान और लेश्या पुवणिदेण विधिणा उझायदिज्झाणं विसुद्धलेस्साओ। पवयणसंभिण्णमदी मोहस्स खयं करेमाणो॥ -भगआ० गा २०६१ विजयोदया टीका-पुव्वभणिदेण विधिणा पूर्वोक्त न क्रमणो ध्याने प्रवर्तते विशुद्धलेश्याः। प्रवचनार्थमनुप्रविष्टमतिः मोहनीयं क्षयं नेतुमुद्यतः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016038
Book TitleLeshya kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year2001
Total Pages740
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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