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लेश्या-कोश (१) ओहियपणिदि संमुच्छिमा य गब्भे तिरिक्ख इथिओ।
समुच्छमगब्भतिरिया, मुच्छतिरिक्खी य गन्भंमि ।। (२) संमुच्छिमग भइत्थि पणिदि तिरिगित्थीयाओ ओहित्थी।
दस अप्पबहुगभेआ तिरियाणं होंति नायव्वा । (१) औधिक सामान्य तिर्यच पंचेन्द्रिय, (२) संमूच्छिम तिर्यच पंचेन्द्रिय, (३) गर्भज तिर्य च पंचेन्द्रिय, (४) गर्भज तिर्यच पंचेन्द्रिय स्त्री, (५) संमूच्छिम तथा गर्भज तिर्यच पंचेन्द्रिय, (६) संमूच्छिमः पंचेन्द्रिय तथा तिर्यच स्त्री, (७) गर्भज तिर्य च पंचेन्द्रिय तथा तिर्यच स्त्री, (८) समूच्छिम, गर्भज तिर्यच पंचेन्द्रिय तथा तिर्य च स्त्री, (8) पंचेन्द्रिय तिर्यच तथा तिर्यच स्त्री और (१०) औधिक सामान्य तिर्यच तथा तिर्यच स्त्री। इस प्रकार तिर्यचों के दस अल्पबहुत्व जानने चाहिए।
एवं मणुस्सा वि अप्पाबहुगा भाणियव्वा, नवरं पच्छिम ( दसं) अप्पाबहुगं नथि।
-पण्ण० प १७ । उ २ । सूत्र १६ यह पाठ पण्णवणा सूत्र की प्रति (क) तथा (ग) में नहीं है लेकिन (ख) में है। टीका में भी है।
'मनुष्याणामपि वक्तव्यानि, नवरं पश्चिमं दशममल्पबहुत्वं नास्ति, मनुष्याणामनन्तत्वाभावात, तदभावे काऊलेसा अणंतगुणा इति पदासम्भवात् ।'
मनुष्य का अल्पबहुत्व पंचेन्द्रिय तिर्यचयोनिक की तरह जानना चाहिए । ( देखो पाठ ६१.११ से १६१.१६ तक )। ६१.२० वाँ बोल नहीं कहना चाहिए। क्योंकि मनुष्यों में अनन्त का अभाव है। अतः कापोतलेशी अनन्तगुणा' यह पाठ सम्भव नहीं है। .६१.२२ देवताओं में
एएसि णं भंते! देवाणं कण्हलेसाणं जाव सुकलेसाण य कयरे कयरेहिंतो अप्पा वा ४ ? गोयमा ! सव्वत्थोवा देवा सुक्कलेसा, पम्हलेसा असंखेज्जगुणा, काउलेसा असंखेज्जगणा, नीललेसा विसेसाहिया, कण्हलेसा विसेसाहिया, तेऊलेसा संखेज्जगुणा ।
-पण्ण० प १७ । उ २ । सू १७ । पृ० ४४०
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