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________________ लेश्या - कोश ३५५ योज, (३) कृतयुग्म द्वापरयुग्म, (४) कृतयुग्म कल्योज, (५) त्र्योज कृतयुग्म, (६) यो योज, (७) योज द्वापरयुग्म, (८) योज कल्योज, (९) द्वापरयुग्म कृतयुग्म, (१०) द्वापरयुग्म योज, (११) द्वापरयुग्म द्वापरयुग्म, (१२) द्वापरयुग्म कल्योज, (१३) कल्योज कृतयुग्म, (१४) कल्योज श्योज, (१५) कल्योज द्वापरयुग्म तथा (१६) कल्योज कल्यो । महायुग्म के सोलह भेद राशि (संख्या) तथा अपहार समय की अपेक्षा से किये गये हैं । जिस राशि में से प्रति समय चार-चार घटातेघटाते शेष में चार बाकी रहे तथा घटाने के समयों में से भी चार-चार घटातेघटाते चार बाकी रहे वह कृतयुग्म - कृतयुग्म कहलाता है क्योंकि घटानेवाले द्रव्य तथा समय की अपेक्षा दोनों रीति से कृतयुग्म रूप हैं । सोलह की संख्या जघन्य कृतयुग्म कृतयुग्म राशि रूप हैं । उसमें से प्रति समय चार घटाते - घटाते शेष में चार बचते हैं तथा घटाने के समय भी चार होते हैं अथवा उन्नीस की संख्या में प्रति समय चार घटाते - घटाते शेष में तीन शेष रहते हैं तथा घटाने के समय चार लगते हैं । अतः १ε की संख्या जघन्य कृतयुग्म योज कहलाती है । इसी प्रकार अन्य भेद जान लेने चाहियें । ] यहाँ पर महायुग्म राशि एकेन्द्रिय यावत् पंचेन्द्रिय जीवों का निम्नलिखित ३३ पदों से विवेचन किया गया है तथा विस्तृत विवेचन कृतयुग्म कृतयुग्म एकेन्द्रिय के पद में हैं, अवशेष महायुग्म पदों में इसकी भुलावण है तथा जहाँ भिन्नता है वहाँ भिन्नता बतलाई गई है । स्थान-स्थान पर उत्पल उद्देशक ( भग० श ११ । उ १ ) की भुलावण है । (१) कहाँ से उपपात, (२) उपपात संख्या, (३) जीवों की संख्या, (४) अवगाना, (५) बंधक - अबन्धक, (६) वेदक - अवेदक, (७) उदय- अनुदय, (८) उदीरकअनुदीरक, (e) लेश्या, (१०) दृष्टि, (११) ज्ञानी अज्ञानी, (१२) योगी, (१३) उपयोगी, (१४) शरीर के वर्ण-गंध-रस-स्पर्शी, आत्मा की अपेक्षा अवर्णी आदि, (१५) श्वासोच्छ्वासक, (१६) आहारक- अनाहारक, (१७) विरत -अविरत, (१८) सक्रिय - अक्रिय, (१६) कर्म संख्या बंधक, (२०) संज्ञोपयोगी, (२१) कषायी, (२२) वेदक ( लिंग ), (२३) वेदबन्धक, (२४) संज्ञी - असंज्ञी, (२५) इन्द्रिय- अनिन्द्रिय, (२६) अनुबन्धकाल (२७) आहार, (२८) संवेध, (२६) स्थिति, (३०) समुद्घात, (३१) समवहत, (३२) उद्वर्तन तथा (३३) अनन्तखुत्तो । सोलह महायुग्मों में प्रत्येक महायुग्म के जीवों के सम्बन्ध में ११ अपेक्षाओं अपेक्षाओं से ११ उददेशक कहे गये हैं । प्रत्येक उद्द े शक में उपयुक्त ३३ पदों का विवेचन है । ११ अपेक्षाए इस प्रकार हैं Jain Education International • For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016038
Book TitleLeshya kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year2001
Total Pages740
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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