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________________ लेश्या-कोश ३५३ मिच्छादिट्ठीहि वि चत्तारि उद्देसगा कायव्वा जहा भव सिद्धियाणं । एवं कण्हपक्खिएहि वि लेस्सासंजुत्तेहिं चत्तारि उद्देसगा कायव्वा जद्देव भवसिद्धिएहिं । सुक्कपक्खिहिं एवं चैव चत्तारि उद्देसगा भाणियव्वा । जाव वालुयष्पभापुढविकाऊलेस्स सुक्कपक्खियखुड् डागकलिओगनेरइया णं भंते ! कओ उववज्जंति० ? तहेव जाव नो परप्पयोगेणं उववज्र्ज्जति । — भग० श ३१ | उ ६ से २८ । पृ० ६१२ कृष्णलेशी भवसिद्धिक क्षुद्रकृतमुग्म नारकी के सम्बन्ध में जैसा औधिक कृष्णलेशी उद्देशक में कहा वैसा ही निरवशेष चारों युग्मों में कहना चाहिए । कृष्णलेशी भवसिद्धिक क्षुद्रकृतयुग्म धूमप्रभा नारकी यावत् कृष्णलेशी भवसिद्धिक कल्योज तमतमाप्रभा नारकी तक नौ पदों में कृष्णलेशी औधिक उद्देशक की तरह कहना चाहिए । नीलेशी भवसिद्धिक के चारों युग्म उद्देशक वैसे ही कहने चाहिए जैसे औधिक नीललेशी युग्म उद्देशक कहे गये हैं । कापोतलेशी भवसिद्धिक के चारों युग्म उद्देशक वैसे ही कहने चाहिए जैसे औधिक कापोतलेशी युग्म उद्देशक कहे गये हैं । जैसे भवसिद्धिक के चार उद्देशक कहे गये हैं, वैसे ही अभवसिद्धिक के चार उद्देशक ( औधिक, कृष्णलेशी, नीललेशी, कापोतलेशी ) जानने चाहिए । इसी प्रकार समदृष्टि के लेश्या संयोग से चार उद्देशक जानने चाहिए । लेकिन समदृष्टि के प्रथम द्वितीय उद्देशक में तमतमाप्रभा पृथ्वी में उपपात न कहना चाहिए । मिध्यादृष्टि के भी लेश्या संयोग से चार उद्देशक भवसिद्धिक की तरह जानना चाहिए | इसी प्रकार कृष्णपाक्षिक के लेश्या संयोग से चार उद्देशक भवसिद्धिक की तरह कहने चाहिए । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016038
Book TitleLeshya kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year2001
Total Pages740
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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