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समर्पण
जिनमें अनेकान्त दृष्टि और यथार्थवाद पूर्ण विकसित थे, जो सत्य को संघीय क्षितिज के पार भी देखते थेजिन्होंने अपने प्रत्यक्ष बोध के आधार पर सत्य का प्रतिपादन किया। ( अज्ञानी क्या करेगा, जबकि उसे श्रेय और पाप का ज्ञान भी नहीं होता। इसलिए पहले सत्य को जानो और बाद में उसे जीवन में उतारो। वही सत्य है, जो जिन आप्त और वीतराग ने कहा है। आप्त के उपदेश को आगम सिद्धान्त माना है। जो हेतुवाद के पक्ष में हेतु का प्रयोग करता है, आगम के पक्ष में अगमिक है, वही स्व-सिद्धान्त का जानकार है। जो इससे विपरीत चलता है, वह सिद्धान्त का विराधक है। आगम को प्रमाण मानने वालों के अनुसार जो सर्वज्ञ ने कहा है वह, तथा जो सर्वज्ञ कथित है और युक्ति द्वारा समर्थित है वह सत्य है। सत्य ही लोक में सारभूत है। धर्म-दर्शन का उत्स आप्तवाणी आगम है ) जनता की भाषा में जनता को उपदेश दिया तथा साधु-साध्वीश्रावक-श्राविका रूप चार तीर्थ की स्थापना की-उन वर्धमान तीर्थकर को प्रस्तुत लेश्या कोश द्वितीय खण्ड समर्पित करता हूँ ।
-श्रीचन्द चोरड़िया, कलकत्ता
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