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लेश्या-कोश
३३७ आहारेंति, बहुतराए पोग्गले परिणामें ति, बहुतराए पोग्गले उस्ससंति, बहुतराए पोग्गले नीससंति ; अभिक्खणं आहारेंति, अभिक्खणं परिणामेंति, अभिक्खणं उस्सति, अभिक्खणं नीससंति ! तत्थ णं जे ते अप्पसरीरा ते णं अप्पतराए पोग्गले आहारेंति, अप्पतराए पोग्गले परिणामेंति, अप्पतराए पोग्गले उस्ससंति, अप्पतराए पोग्गले नीससंति ; आहच्च आहारति, आहच्च परिणामेंति, आहच्च उस्ससंति, आहच्च नीससंति । से तेण?णं गोयमा ! एवं बुच्चइ-नेरइया नो सव्वे समाहारा, नो सव्वे समसरीरा, नो सव्वे समुम्सासनीसासा ।
-भग० श १ । उ २ । सू ६६, ७० १-नारकी का दंडक
नारकी दो प्रकार के कहे गये है
१-महाशरीरवाले ( महाकाय ) और अपशरीर ( छोटे शरीर ) वाले । इनमें जो बड़े शरीर वाले हैं वे बहुत पुद्गलों का आहार करते हैं, बहुत (आहृत) पुद्गलों का परिणमन करते हैं, बहुत पुद्गलों को उच्छ्वास रूप में ग्रहण करते हैं और बहुत पुद्गलों को निःश्वास रूप से छोड़ते हैं तथा वे बार-बार आहार लेते हैं, बार-बार उसे परिणमाते हैं बार-बार उच्छवास लेते हैं तथा निःश्वास छोड़ते हैं। उनमें जो छोटे शरीर वाले नारकी हैं वे थोड़े पुद्गलों का आहार करते हैं तथा थोड़े से आहत पुद्गलों का परिणमन करते हैं और थोड़े पुद्गलों का उच्छवास रूप में ग्रहण करते हैं तथा थोड़े पुद्गलों का निःश्वास रूप में छोड़ते हैं। वे कदाचित् आहार करते हैं, कदाचित् उसे परिणमाते हैं और कदाचित् उच्छवास लेते हैं और निःश्वास छोड़ते हैं। इसलिए हे गौतम ! इस हेतु से यह कहा जाता है कि सभी नारकी जीव समान आहार वाले, समान शरीर वाले और समान उच्छवास निःश्वास वाले नहीं होते हैं। '२–नेरइया णं भंते ! सव्वे समकम्मा ? गोयमा ! नो इण8 सम? ।
से केणढणं भंते ! एवं वुच्चइ-नेरइया नो सव्वे समवण्णा ?
गोयमा ! नेरइया दुविहा षण्णत्ता, तं जहा-पुव्वोववनगा य, पच्छोववन्नगा य । तत्थ णं जे ते पुव्वोववन्नगा ते णं अप्पकम्मतरागा। तत्थ णं जे ते पच्छोववन्नगा ते णं महाकम्मतरागा। से तेणढणं गोयमा! एवं वुच्चइ-नेरइया नो सव्वे समकम्मा।
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