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लेश्या-कोश (४), अहवा तिरिक्खजोणिएसु य नेरइएसु य मणुस्सेसु य होज्जा (५), अहवा तिरिक्खजोणिए सु य नेरइएसु य देवेमु य होजा (६), अहवा तिरिक्खजोणिएसु य मणुम्सेसु य देवेसु य होजा (७), अहवा तिरिक्खजोणिएसु य नेरइएसु य मणुस्सेसु य देवेसु य होजा (८)। __सलेस्सा णं भंते ! जीवा पावं कम्म कहिं समजिणिंसु, कहिं समायरिंसु ? एवं चेव । एवं कण्हलेस्सा जाव अलेस्सा। xxx नेरइयाणं भंते ! पावं कम्म कहिं समज्जिणिंसु, कहिं समायरिंसु ? गोयमा ! सव्वे वि ताव तिरिक्खजोणिएसु होज्जा त्ति-एवं चेव अट्ठ भंगा भाणियव्वा । एवं सव्वत्थ अह भंगा, एवं जाव अणागारोवउत्ता वि। एवं जाव वेमाणियाणं । एवं नाणावरणिज्जेण वि दंडओ, एवं जाव अंतराइएणं। एवं एए जीवादीया वेमाणियपज्जवसाणा नव दंडगा भवंति।
-भग० श २८ । उ १ । पृ० ६०३
जीवों ने किस गति में पापकर्म का समर्जन किया-उपार्जन किया तथा किस गति में पापकर्म का समाचरण किया-पापकर्म की हेतुभूत पापक्रिया का आचरण किया। (१) वे सर्व जीव तिर्यञ्चयोनि में थे, (२) अथवा तिर्यञ्चयोनि में तथा नारकियों में थे, (३) अथवा तिर्यञ्च योनि में तथा मनुष्यों में थे, (४) अथवा तिर्यञ्चयोनि में तथा देवों में थे, (५) अथवा तिर्यञ्चयोनि में, नारकियों तथा मनुष्यों में थे, (६) अथवा तिर्यञ्चयोनि में, नारकियों तथा देवों में थे, (७) अथवा तिर्य चयोनि में, मनुष्यों तथा देवों में थे, (८) अथवा तिर्यचयोनि में, नारकियों, मनुष्यों तथा देवों में थे। इन आठ अवस्थाओं में जीवों ने पापकर्म का समजेन तथा समाचरण किया था।
सलेशी जीवों ने पापकर्म का समर्जन तथा समाचरण उपयुक्त आठ विकल्पों में किया था। इसी प्रकार कृष्णलेशी यावत् शुक्ललेशी व अलेशी जीवों ने पापकर्म का समजन तथा समाचरण आठ विकल्पों में किया था। सलेशी नारकी जीवों ने भी पापकर्म का समर्जन तथा समाचरण आठ विकल्पों में किया था। इसी प्रकार यावत् वैमानिक देवों तक जानना चाहिए। सलेशी यावत् अलेशी जीवों ने ज्ञानावरणीय यावत् अंतराय--अष्ट कर्मों का समर्जन तथा समाचरण आठ विकल्पों में किया था। इसी प्रकार नारकी यावत् वैमानिक जीवों ने पापकर्म
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