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पुद्गल नील लेश्या में बदल गये । पीत लेश्या के पुद्गलों का योग मिला, कृष्ण लेश्या के पुद्गल पद्म लेश्या में बदल गये । तेजोलेश्या के पुद्गलों का योग मिला, कृष्ण लेश्या तेजो लेश्या के रूप में परिणत हो गयी । शुक्ल लेश्या का योग मिला, कृष्ण लेश्या शुक्ल लेश्या में बदल गयी ।
यह लेश्या परिवर्तन का सिद्धान्त महत्वपूर्ण है । लाल, नीला और सफेद - इन तीन वर्णों का संध्या के वह शरीर और मन दोनों दृष्टियों से शुद्ध रहता है ।
नमस्कार महामन्त्र का ध्यान पांच वर्णों के साथ किया जाता है । नमस्कार महामंत्र के जप के साथ रंगों का प्रयोग करें। इससे रंग और लेश्या का संतुलन सधेगा, शारीरिक, मानसिक और भावात्मक संतुलन सधेगा ।
वैदिक मान्यतानुसार जो समय जो ध्यान करता है,
शुभ और अशुभ के भेद से लेश्या के दो भेद होते हैं । प्रशस्त और अप्रशस्त के भेद से लेश्या के दो भेद, धर्म और अधर्म के भेद से लेश्या के दो भेद तथा भाव और द्रव्य के भेद से लेश्या के दो भेद होते हैं । लेश्या की अनंत पर्यायें हैं । भीणी चरचा में श्रीमज्जायाचार्य ने कहा है
द्रव्य लेश्या छॐ अठ फरशी है, भाव लेश्या है जीव ॥२॥ द्रव्य लेश्या छॐ षद्रव्य मांहि, पुद्गल कहिये ताहि ||३|| नव तत्त्व मांहि अजीव पदारथ, पुण्य पाप बंध नांहि ॥ ४ ॥ -ढाल १ । गा २, ३, ४
कृष्णादि छओं द्रव्य लेश्या अष्टस्पर्शी है तथा भाव लेश्या जीव है । कृष्णादि छओं लेश्या—षट् द्रव्यों की अपेक्षा पुद्गल है तथा नव तत्व में अजीव पदार्थ है परन्तु पुण्य, पाप, बंध नहीं है । लोक प्रकाश में कहा है
" कषायोदीपकत्वेऽपि लेश्यानां न तदात्मता" ।
लोक प्रकाश । श्लो २६२ से २०४
अर्थात् लेश्या के द्रव्य कषाय को यद्यपि उद्दीप्त करते हैं तथा कषाय के साथ
लेश्या एकात्मक नहीं है । कषाय से भिन्न पदार्थ है । होने से अयोगी केवली भी १.
अर्थात् लेश्या कषाय का लेश्या कर्मों का निष्यंद सलेशी कहे जायेंगे । १
गुण या लक्षण नहीं है । नहीं है । लेश्या कर्म की
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- लोक प्रकाश । श्लो २६१
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क्योंकि ऐसा स्थिति की
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