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लेश्या-कोश
२९५ नेरइए णं भंते ! वेयणिज्ज कम्मं किं बंधी बंधइ बंधिस्सइ० ? एवं नेरइया, जाव वेमाणिया त्ति । जस्स जं अत्थि सव्वत्थ वि पढमबिइया, भंगा नवरं मणुस्से जहा जीवे ।
-भग० श २६ । उ १ । सू १७-१८ । पृ० ८६६-६०० कोई एक सलेशी जीव प्रथम विकल्प से, कोई एक द्वितीय विकल्प से, कोई एक चतुर्थ विकल्प से वेदनीय कर्म का बंधन करता है। तृतीय विकल्प से कोई भी सलेशी जीव वेदनीय कर्म का बंधन नहीं करता है। कृष्णलेशी यावत् पद्मलेशी जीव कोई प्रथम विकल्प से, कोई द्वितीय विकल्प से वेदनीय कर्म का बंधन करता है। शुक्ललेशी जीव कोई प्रथम विकल्प से, कोई द्वितीय विकल्प से, कोई चतुर्थ विकल्प से वेदनीय कर्म का बंधन करता है। अलेशी जीव चतुर्थ विकल्प से वेदनीय कर्म का बन्धन करता है।
सलेशी नारकी यावत् वैमानिक देव तक मनुष्य को छोड़कर कोई प्रथम विकल्प से, कोई द्वितीय विकल्प से वेदनीय कर्म का बन्धन करता है। जिसके जितनी लेश्या हो उतने पद कहने चाहिये । मनुष्य में जीवपद की तरह वक्तव्यता कहनी चाहिये। ७५.१.५ सलेशी औधिक जीव-दंडक और मोहनीय कर्म-बन्धन- जीवेण भंते ! मोहणिज्जं कम्म किं बंधी बंधइ० जहेवं पाव कम्म तहेव मोहणिज्जं वि निरवसेसं जाव वेमाणिए।
-भग० श २६ । उ १ । सू १६ । पृ० ६०० मोहनीय कर्म के बंधन की वक्तव्यता निरवशेष उसी प्रकार कहती चाहिये, जिस प्रकार पाप-कर्म की बंधन वक्तव्यता कही है। ७५.६.६ सलेशी औधिक जीव-दंडक और आयु कर्म-बन्धन___ जीवे णं भंते ! आउयं कम्मं किं बंधी बंधइ० पुच्छा ? गोयमा! अत्थेगइए बंधी० चउभंगो, सलेस्से जाव सुक्कलेस्से चत्तारि भंगा; अलेस्से चरिमो भंगो। x x x नेरइए णं भंते ! आउयं कम्मं किं बंधी० पुच्छा ? गोयमा ! अत्थेगइए चत्तारि भंगा, एवं सव्वत्थ वि नेरइयाणं चत्तारि भंगा, नवरं कण्हलेस्से कण्हपक्खिए य पढमततिया भंगा x x x । असुरकुमारे एवं चेव, नवरं कण्हलेस्से वि चत्तारि
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