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________________ लेश्या-कोश २८५ कोई एक जीव आत्मारंभी, परारंभी, उभयारंभी होता है, अनारंभी नहीं होता है। कोई एक जीव आत्मारंभी, परारंभी, उभयारंभी नहीं होता है, अनारंभी होता है। जीव दो प्रकार के होते हैं-यथा (१) संसारसमापन्नक तया (२) असंसारसमापन्नक । उनमें से जो असंसारसमापन्नक जीव है वे सिद्ध हैं तथा सिद्ध आत्मारम्भी, परारम्भी, उभयारम्भी नहीं होते हैं, अनारम्भी होते हैं। जो संसारसमापन्नक जीव हैं, वे दो प्रकार के होते हैं, यथा-(१) संयत, (२) असंयत । जो संयत होते हैं वे दो प्रकार के होते हैं, यथा-(१) प्रमत्त संयत, (२) अप्रमत्त संयत । इनमें से जो अप्रमत्त संयत हैं वे आत्मारम्भी, परारंभी, उभयारम्भी नहीं होते हैं, अनारम्भी होते हैं । इनमें जो प्रमत्त संयत हैं वे शुभयोग की अपेक्षा आत्मारम्भी, परारम्भी, उभयारम्भी नहीं होते हैं, अनारम्भी होते हैं तथा वे अशुभयोग की अपेक्षा आत्मारम्भी, परारम्भी, उभयारम्भी, होते हैं, अनारम्भी नहीं होते हैं। जो असंयत हैं वे अविरति की अपेक्षा आत्मारम्भी, परारम्भी, उभयारम्भी होते हैं। इसलिए यह कहा गया है कि कोई एक जीव आत्मारम्भी, परारम्भी, उभयारम्भी होता है, अनारम्भी नहीं होता है तथा कोई एक जीव आत्मारम्भी, परारम्भी, उभयारम्भी नहीं होता है, अनारम्भी होता है। औधिक जीवों की तरह सलेशी जीव भी कोई एक आत्मारम्भी, परारम्भी तथा उभयारम्भी है, अनारम्भी नहीं है; कोई एक जीव आत्मारम्भी, परारम्भी, उभयारम्भी नहीं है, अनारम्भी है, सलेशी जीव सभी संसारसमापन्नक हैं अतः सिद्ध नहीं हैं। कृष्णलेशी, नीललेशी तथा कापोतलेशी जीव मनुष्य को छोड़कर औधिक जीव दण्डक की तरह आत्मारम्भी, परारम्भी तथा उभयारम्भी नहीं हैं। यह अविरति की अपेक्षा से कथन है। कृष्णलेशी, नीललेशी तथा कापोतलेशी मनुष्य कोई एक आत्मारम्भी, परारम्भी तथा उभयारम्भी है, अनारम्भी नहीं है ; कोई एक आत्मारम्भी, परारम्भी तथा उभयारम्भी नहीं है, अनारम्भी है लेकिन इनमें प्रमत्तसं यत भेद नहीं करने चाहिए क्योंकि इन लेश्याओं में अप्रमत्तसंयतता सम्भव नहीं है। यहाँ टीकाकार का कथन है कि इन लेश्याओं में प्रमत्तसं यतता भी सम्भव नहीं है। ___टी का-कृष्णादिषु हि अप्रशस्तभावलेश्यासु संयतत्वं नास्ति xxx तद् द्रव्यलेश्यां प्रतीत्येति मन्तव्यं, ततस्तासु प्रमत्ताद्यभावः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016038
Book TitleLeshya kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year2001
Total Pages740
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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