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लेश्या-कोश .६१.५ तेजोलेशी जीव-दण्डक और समपद __ तेउलेस्साणं भंते ! असुरकुमाराणं ताओ चेव पुच्छाओ ? गोयमा ! जहेव ओहिया तहेव, नवरं वेयणाए जहा जोइसिया।
पुढविआउवणस्सइपंचेंदियतिरिक्खमणुस्सा जहा ओहिया तहेव भाणियव्वा, नवरं मणुस्सा किरियाहिं जे संजया ते पमत्ता य अपमत्ता य भाणियव्वा, सरागा वीयरागा नत्थि । वाणमंतरा तेऊलेस्साए जहा असुरकुमारा, एवं जोइसियवेमाणिया वि, सेसं तं
चेव।
–पण्ण० प १७ । उ १ । सू ११ । पृ० ४३७ तेजोलेशी सर्व असुरकुमार औधिक असुरकुमार की तरह समाहारी यावत् समोपपन्नक नहीं हैं परन्तु वेदना---ज्योतिषी की तरह समझना ।
तेजोलेशी सर्व पृथ्वी काय अप्काय वनस्पतिकाय तिर्यच पंचेन्द्रिय मनुष्य औधिक की तरह समझना परन्तु मनुष्य की क्रिया में विशेषता है-उनमें जो संयत हैं वे प्रमत्त तथा अप्रमत्त के भेद से दो प्रकार के हैं परन्तु सराग तथा वीतराग-ऐसे भेद नहीं करना ।
तेजोलेशी वानव्यंतर देव असुरकुमार की तरह समाहारी यावत् समोपपन्नक नहीं है।
इसी प्रकार ज्योतिषी तथा वैमानिक देवों के सम्बन्ध में समझना । ६१.६ पद्मलेशी जीव-दंडक और समपद
एवं पम्हलेस्सा वि भाणियव्वा, नवरं जेसिं अस्थि । x x x नवरं पम्हलेस्स - सुक्कलेस्साओ पंचेंदियतिरिक्खजोणियमणुस्सवेमाणियाणं चेव।
-पण्ण० प १७ । उ १ । सू ११ । पृ० ४३७ जैसा तेजोलेशी जीव दंडक के विषय में कहा, उसी प्रकार पद्मलेशी जीव दंडक के विषय में समझना । परन्तु जिसके पद्मलेश्या होती है उसी के कहना। ___ गर्भज तिर्य च पंचेन्द्रिय, गर्भज मनुष्य तथा वैमानिक देवों में पद्मलेश्या होती है।
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