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________________ लेश्या - कोश पंचेन्द्रिय जीव समूह भी साधारण शरीर नहीं बांधते हैं, प्रत्येक शरीर बांधते हैं । इन पंचेन्द्रिय जीव समूह के छः लेश्याएँ होती हैं । २३६ ५९२ दंडकों में कितनी लेश्या काऊ १ काऊ २ तह काऊ नील ३, नीला ४ य नील किण्हा ५ य । किण्हा ६ किण्हा ७ य तहा सत्तसु पुढवीसु लेसाओ || १०८३|| चत्तारि । सेसाणं ॥ १११०॥ पुढवी- आउवणस्सइबायर - पत्ते सु गभे तिरियन रेसु किण्हा नीला काऊ तेऊलेसा जोइस सोहंमीसाण तेऊसा क एएस छल्लेसा सकुमारेमा हिंदे पम्हलेसा तेणं चेव Jain Education International लेस परं तिन्नि य भवणवंतरिया | बंभलोए य । सुक्कलेसाओ ||११६०॥ - प्रवसा० गा १०८३, १११०, ११५६-६० मुब्वा ||१९५६ ॥ १ कापोत, २ कापोत, ३ कापोत-नील, ४ नील, ५ नील- कृष्ण, ६ कृष्ण तथा ७ कृष्ण - इस प्रकार सात पृथ्वियों में लेश्या हैं । अर्थात् रत्नप्रभा पृथ्वी में एक कापोतलेश्या होती है । शर्कराप्रभा में भी कापोनलेश्या ही है । परन्तु रत्नप्रभा से क्लिष्टतर कापोतलेश्या होती है । बालुकाप्रभा में कापोत और नीललेश्या होती है । पंकप्रभा में नीललेश्या होती है । धूमप्रभा में नीललेश्या और कृष्णलेश्या होती है । तमप्रभा में कृष्णलेश्या है और तमतमा पृथ्वी में अतिसंक्लिष्टतम कृष्णलेश्या ही है । बादर पृथ्वीकाय, बादर अप्काय, बादर प्रत्येक वनस्पतिकाय में प्रथम चार लेश्या होती है । गर्भज मनुष्य- तिर्यंच में छः लेश्या होती हैं—और अवशेष— अनिकाय, वायुकाय, सूक्ष्म पृथ्वी, सूक्ष्म अप्काय, साधारण वनस्पतिकाय तथा पर्याप्त बादर पृथ्वीकाय, अप्काय, प्रत्येक वनस्पतिकाय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, संमुच्छिम मनुष्य, संमुच्छिम तिर्यञ्च पंचेन्द्रिय में कृष्ण-नील- कापोतलेश्या होती हैं । भवनपति और वाणव्यंतर में कृष्ण, नील, कापोत और तेजोलेश्या होती है । ज्योतिषी सौधर्म और ईशान देवों में ( प्रथम किल्विषी में ) एक तेजोलेश्या होती For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016038
Book TitleLeshya kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year2001
Total Pages740
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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