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लेश्या-कोश
१७५ १६ से २४-कर्मभूमिज कृष्णलेशी मनुष्य यावत् शुक्ललेशी मनुष्य कृष्णलेशी स्त्री यावत् शुक्ललेशी स्त्री में कृष्णलेशी यावत् शुक्ललेशी गर्भ उत्पन्न करता है।
२५ से २८-अकर्मभूमिज कृष्णलेशी मनुष्य यावत् तेजोलेशी मनुष्य अकर्मभूमिज कृष्णलेशी स्त्री यावत् तेजोलेशी स्त्री कृष्णलेशी यावत् तेजोलेशी गर्भ उत्पन्न करता है।
२६ से ३२-इसी प्रकार अन्तद्वीपज मनुष्यों का जानना ।
५६ जीव ओर लेश्या समपद
१-नारकी और लेश्या समपद
(क) नेरइया णं भंते ! सव्वे समलेस्सा ? गोयमा! नो इण? समह । से केण?णं जावनो सव्वे समलेस्सा ? गोयमा ! नेरइया दुविहा पण्णत्ता। तं जहा-पुब्वोववन्नगा य, पच्छोववनगा य, तत्थ णं जे ते पुव्वोववन्नगा ते णं विसुद्धलेस्सतरागा, तत्थ णं जे ते पुच्छोववनगा ते णं अविसुद्धलेस्सतरागा, से तेण?णं ।
-भग ० श १ । उ २ । सू ८६-६७ । पृ० १७, १८ __ (ख) एवं जहेव वन्नेणं भणिया तहेव लेस्सासु विशुसुलेसतरागा अविसुद्धलेसतरागा य भाणियव्वा ।
-पण्ण० प १७ । उ १ । सू ३ । पृ० ४३५ नारकी दो तरह के होते हैं यथा-१ पूर्वोपपन्नक, २ पश्चादुपपन्नक । उनमें जो पूर्वोपपन्नक हैं वे विशुद्धलेश्या वाले होते हैं, तथा जो पश्चादुपपन्नक हैं वे अविशुद्धलेश्या वाले होते हैं । अतः नारकी समलेश्या वाले नहीं होते हैं।
२–पृश्वीकाय यावत् वनस्पतिकाय, तीन विकलेन्द्रिय, तिर्यञ्च पंचेन्द्रिय तथा मनुष्य और लेश्या समपद
(क) पुढविकाइयाणं आहारकम्मवन्न लेस्सा जहा नेरइयाणंxxx जहा-पुढविकाइया तहा जाव चउरिंदिया। पंचिंदियतिरिक्खजोणिया जहा नेरइया । x x x मणुस्सा जहा नेरइया ।
-भग० श १ । उ २ । सू ७६, ८२, ८३, ८६ । पृ० १६, २०
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