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लेश्या-कोश
१७३ जहण्नेणं काऊए पलियमसंखं च उक्कोसा। तेण परं वोच्छामि, तेउलेसा जहा सुरगणाणं ॥ भवणवइवाणमंतर जोइसवेमाणियाणं च । पलिओवमं जहन्ना, उक्कोसा सागरा उ दुण्णहिया ॥ पलियमसंखेज्जेणं, होइ भागेण तेऊए । दसवाससहस्साइ, तेऊए ठिई जहनिया होइ॥ दुन्नुदही पलिओवमअसंखभागं च उक्कोसा। जा तेऊए ठिई खलु, उक्कोसा सा उ समयमब्भहिया।। जहन्नेणं पम्हाए, दस उ मुहुत्ताऽहियाई उक्कोसा। जा पम्हाए ठिई खलु, उक्कोसा सा उ समयमब्भहिया ॥ जहन्नेणं सुक्काए, तेत्तीसमुहुत्तमब्भहिया ।
-उत्त० अ ३४ । गा ४७-५५ । पृ० १०४८ देवों की लेश्या की स्थिति में कृष्णलेश्या की स्थिति जघन्य दस हजार वर्ष की और उत्कृष्ट स्थिति पल्योपम के असंख्यातवें भाग की होती है। नीललेश्या की जघन्य स्थिति तो कृष्णलेश्या की उत्कृष्ट स्थिति से एक समय अधिक है और उत्कृष्ट स्थिति पल्योपम के असंख्यातवें भाग अधिक की है। . कापोतलेश्या की जघन्य स्थिति, नीललेश्या की उत्कृष्ट स्थिति से एक समय अधिक और उत्कृष्ट स्थिति पल्योपम के असंख्यात भाग होती हैं।
तेजोलेश्या की स्थिति जघन्य एक पल्योपम और उत्कृट स्थिति पल्योपम के असंख्यातवें भाग अधिक दो सागरोपम की ( वैमानिक की ) होती है।
तेजोलेश्या की स्थिति जघन्य दस हजार वर्ष ( भवनपति और व्यन्तर देवों की अपेक्षा ) और उत्कृष्ट पल्योपम के असंख्यातवें भाग अधिक दो सागरोपम की होती है। ईशान देवलोक की अपेक्षा । ___ जो उत्कृष्ट स्थिति तेजोलेश्या की है उससे एक समय अधिक पद्मलेश्या की जघन्य स्थिति होती है और उत्कृष्ट स्थिति अन्तमुहर्त अधिक दस सागरोपम की है। ___ जो उत्कृष्ट स्थिति पद्मलेश्या की है, उससे एक समय अधिक शुक्ललेश्या की जघन्य स्थिति होती है, और शुक्ललेश्या की उत्कृष्ट स्थिति अन्तर्मुहूर्त अधिक तैतीस सागरोपम की होती है ।
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