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लेश्या-कोश
१६७ (नियंठे णं भंते ! पुच्छा । गोयमा ! सलेस्से होज्जा नो अलेस्से होज्जा, जइ सलेस्से होज्जा, से णं भंते ! कइसु लेस्सासु होज्जा ? गोयमा ! एगाए सुक्कलेम्साए होज्जा ।) सुहुमसंपराए जहा नियंठे।
-भग० श २५ । उ ७ । सू ५०२ । पृ० ६६२ दशवे ( सूक्ष्मसंपराय ) गुणस्थान जीव में एक शुक्ललेश्या होती है। ट-'यारहवें गुणस्थान के जीवों में
नियंठे णं भंते ! पुच्छा। गोयमा! सलेस्से होज्जा, णो अलेस्से होज्जा, जइ सलेस्से होज्जा, से णं भंते ! कइसु लेस्सासु होज्जा ? गोयमा ! एगाए सुक्कलेस्साए होज्जा।
-भग० श २५ । उ ६ । सू ३७७-३७८ । पृ० ६४८ ग्यारहवें गुणस्थान के जीव में एक शुक्ललेश्या होती है। ठ-बारहवें गुणस्थान के जीवों मेंएक शुक्ललेश्या होती है। ड.-तेरहवें गुणस्थान के जीवों मेंसिणाए पुच्छा, गोयमा ! सलेस्से वा होज्जा, अलेस्से वा होज्जा जइ सलेस्से होज्जा ? से णं भंते ! कइसु लेस्सासु होज्जा ? गोयमा ! एगाए परमसुक्कलेस्साए होज्जा।
-भग० श २५ । उ ६ । सू ३७६-३८० । पृ० ६४८ तेरहवें गुणस्थान में एक परम शुक्ललेश्या होती है।
ढ-चौदहवें गुणस्थान के जीवों में ( देखो पाठ ऊपर ) अलेशी होते हैं । '२८ संयतियों में
क-पुलाक में
पुलाए णं भंते ! किं सलेस्से होज्जा, अलेस्से होज्जा ? गोयमा ! सलेस्से होज्जा, णो अलेस्से होज्जा, जइ सलेस्से होज्जा, से गं भंते ! विइसु लेस्सासु होज्जा ? गोयमा! तिसु विसुद्धलेस्सासु होज्जा, तं जहा-तेऊलेस्साए, पम्हलेस्साए, सुक्कलेस्साए। .
-भग० श २५ । उ ६ । सू ३७३-३७४ । पृ० ८४७
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