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________________ लेश्या-कोश १४५ १५.११ कलाई आदि वनस्पतिकाय में अह भंते ! कल-मसूर-तिल-मुग्ग-मास-निप्फावकुलत्थ-आलिसदंग-सतीण पलिमंथगाणं x x x एवं मूलादीया दस उद्देसगा भाणियव्वा जहेव सालीणं निरवसेसं तहेव । -भग० श २१ । व ३ । उ १ से १० । सू १५ । पृ० ८३७ कलई, मसूर, तिल, मूग, अरहड़, वाल, कुलत्थी, आलिसंदक, सटिन, पालिमंथक, वनस्पति के मूल, कन्द, स्कंध, त्वचा, शाखा, प्रवाल, पत्र में तीन लेश्या तथा २६ विकल्प तथा पुष्प-फल-बीज में चार लेश्या तथा अस्सी विकल्प होते हैं। १५.१२ अलसी आदि वनस्पतिकाय में अह भंते ! अयसि कुसुंभ-कोदव-कंगु-रालग-वरा-कोदूसा-सणसरिसव-मूलगबीयाणं x x x एवं एत्थ वि मूलादीया दस उद्देसगा जहेव सालीणं निरवसेसं तहेव भाणियव्वा । -भग० श २१ । व ३ । उ १ से १० । सू १६ । पृ० ८३७ अलसी, कुसम्भ, कोद्रव, कांग, राल, कुवेर, कोदुसा, सण, सरसव, मूलकबीज वनस्पति के मूल, कन्द, स्कंध, त्वचा, शाखा, प्रवाल, पत्र में तीन लेश्या तथा २६ विकल्प होते हैं तथा पुष्प-फल-बीज में चार लेश्या तथा अस्सी विकल्प होते हैं। १५.१३ वांस आदि वनस्पतिकाय में अह भंते ! वंस-वेणु-कणग-कक्कावंस-चारूवंस-दण्डा-कुडा-विमाचण्डा-वेणुया-कल्लाणीणं x x x एवं एत्थवि मूलादीया दस उद्देसगा जहेव सालीणं, नवरं देवो सव्वत्थ वि न उववज्जइ, तिनि लेस्साओ, सव्वत्थ वि छव्वीसं भंगा। -भग० श २१ । व ४ । सू १७ । पृ० ८३७ बांस, वेणु, मनक, ककविंश, चारू वंश, दण्डा, कुडा, विमा, चण्डा, वेणुका, कल्याणी, इनके मूल यावत् बीज में तीन लेश्या तथा छब्बीस विकल्प होते हैं। www.jainelibrary.org For Private & Personal Use Only Jain Education International
SR No.016038
Book TitleLeshya kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year2001
Total Pages740
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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