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________________ १३४ लेश्या-कोश (ख) ( रयणप्पभापुढविनेरइए णं भंते ! जे भविए पंचिंदियतिरिक्खजोणिए सु उववजित्तए) तेसि णं भंते x x x एगा काऊलेस्सा पनत्ता। -भग० श २४ । उ २० । सू २४१ । पृ० ८८१ तिर्यश्च पंचेन्द्रिय में उत्पन्न होने योग्य रत्नप्रभा नारकी में एक कापोतलेश्या होती है। '०३ शर्कराप्रभा नारकी में एवं सक्करप्पभाएऽवि। -जीवा० प्रति ३ । उ २ । सू ८८ । पृ० १४१ रत्नप्रभा नारकी की तरह शर्कराप्रभा नारकी में भी एक कापोतलेश्या होती है। ( देखो ऊपर का पाठ ) '०४ बालुकाप्रभा नारकी में बालुयप्पभाए पुच्छा, गोयमा ! दो लेस्साओ पन्नत्ताओ, तं जहानीललेस्सा य काऊलेस्सा य । तत्थ जे काऊलेस्सा ते बहुतरा जे नीललेस्सा ते थोवा। -जीवा० प्रति ३ । उ २ । सू ८८ पृ० १४१ बालुका प्रभा पृथ्वी के नारकी के दो लेश्या होती हैं, यथा-नील और कापोत । उनमें अधिकतर कापोत लेश्यावाले हैं, नीललेश्या वाले थोड़े हैं। '०५ पंकप्रभा नारकी में पंकप्पभाए पुच्छा, एगा नीललेस्सा पन्नत्ता । -जीवा० प्रति ३ । उ २ सू८८ । पृ० १४१ पंकप्रभा पृथ्वी के नारकी के एक नीललेश्या होही है। .०६ धूम्रप्रभा नारकी में धूमप्पभाए पुच्छा, गोयमा ! दो लेस्साओ पन्नत्ताओ, तं जहाकण्हलेस्सा य नीललेस्सा य, ते बहुतरगा जे नीललेस्सा थोवतरगा जे कण्हलेस्सा। -जीवा० प्रति ३ । उ २ । सू ८८ । पृ० १४१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016038
Book TitleLeshya kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year2001
Total Pages740
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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