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लेश्या-कोश
११९ ३१.४ सूर्य की लेश्या का प्रतिघात अभिताप । (क) लेस्सापडिघाएणं उग्गमणमुहुत्तंसि दूरे य मूले य दीसन्ति लेस्साभितावेणं मज्झन्तियमुहुत्तंसि मूले य दूरे य दीसन्ति लेस्सापडिघाएणं अत्थममुहुत्तंसि दूरे य मूले य दीसन्ति, से तेण?णं गोयमा ! एवं वुच्चई जम्बुहीवे णं दीवे सूरिया उग्गमणमुहुत्तंसि दूरे या मूले य दीसन्ति जाव अत्थमण जाव दीसन्ति ।
-भग० अ८ । उ ८ । सू ३३१ । पृ० ६७०-१७ लेश्या के प्रतिघात से उगता हआ सूर्य दूर होते हए भी नजदीक दिखलाई पड़ता है तथा मध्याह्न का सूर्य नजदीक होते हुए भी लेश्या के अभिताप से दूर दिखलाई पड़ता है। तथा लेश्या के प्रतिघात से डूबता हुआ सूर्य दूर होते हुए भी नजदीक दिखलाई पड़ता है। लेश्या-प्रतिघात = तेज का प्रतिघात होना अर्थात् कम होना । लेश्या-अभिताप = तेज का अभिताप होना अर्थात् तेज का प्रखर होना । (ख) ता कस्सि णं सूरियस्स लेस्सापडिहया आहिताइ वएजा ? x x x ता जे णं पोग्गला सूरियस लेस्सं फुसन्ति ते गं पोग्गला सूरियस्स लेस्सं पडिहणंति, अदिहावि णं पोग्गला सूरियस्स लेस्सं पडिहणंति, चरिमलेस्संतरगयावि णं पोग्गला सूरियम्स लेस्सं पडिहणंति x x x आहिताइ वएज्जा ।
-~चन्द० सू ५ । पृ० ६६४
-सूरि० सू ५ । वही पाठ सूर्य की लेश्या का तीन स्थान पर प्रतिवात होता है
(१) जो पुद्गल सूर्य की लेश्या का स्पर्श करते हैं वे सूर्य की लेश्या का प्रतिघात-विनाश करते हैं। टीकाकर ने मेरुतट भित्ति संस्थित पुद्गलों का उदाहरण दिया है।
(२) अदृष्ट पुद्गल भी सूर्य की लेश्या का प्रतिघात करते हैं। टीकाकार ने यहाँ भी मेरुतट भित्ति संस्थित सूक्ष्म अदृश्यमान् पुद्गलों का उदाहरण दिया है।
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