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( 25 ) सब भूल वर्ग या उपवर्ग संकलित पाठों के आधार पर बनाये जायेंगे। यथासम्भव वर्गीकरण की सब भूमिकाओं में एकरूपता रखी जायेगी।
लेश्या का विषयांकन हमने ०४०४ किया है। इसका आधार यह है कि सम्पूर्ण जैन वाङमय को १०० भागों में विभाजित किया गया है ( देखें मूल वर्गीकरण सूची पृ० ६ ) इसके अनुसार जीव-परिणाम का विषयांकन ०४ है। जीव परिणाम भी सौ भागों में विभक्त किया गया है (देखें जीव परिणाम वर्गीकरण सूची पृ० १२ ) इसके अनुसार लेश्या का विषयांकन ०४ होता है। अतः लेश्या का विषयांकन हमने ०४०४ किया है। लेश्या के अंतर्गत आने वाले विषयों के आगे दशमलव का चिह्न है, जैसे '५८ तथा ·५८ के उपवर्ग के आगे फिर दशमलव का चिह्न है। जैसे “५८ २ तथा '५८.२ के विषय का उपविभाजन होने से इसके बाद आने वाली संख्या के आगे भी दशमलव विन्दु रहेगा ( देखें चार्ट पृ० १०, १२ )।
सामान्यतः अनुवाद हमने शाब्दिक अर्थ रूप में किया है। लेकिन जहाँ विषय की गम्भीरता या जटीलता देखी है। वहाँ अर्थ को स्पष्ट करने के लिए विवेचनात्मक अर्थ भी किया है। विवेचनात्मक अर्थ करने के लिए हमने सभी प्रकार की टीकाओं तथा अन्य सिद्धांत ग्रन्थों का उपयोग किया है।
पाठक वर्ग से सभी प्रकार के सुझाव अभिनन्दनीय है चाहे वे सम्पादन, वर्गीकरण, अनुवाद या अन्य किसी प्रकार के हो । आशा है इस विषय में विद्वद् वर्ग का पूरा सहयोग प्राप्त होगा।
देवों के महाप्रभाव और उद्योत भाव को दिखाने के लिए-द्युति, प्रभा, ज्योति, छाया, अचि और लेश्या शब्द का प्रयोग किया गया है। यह प्रयोग वर्णात्मक छाया का द्योतक है। दिव्य तेज के बाद दिव्य लेश्या शब्द का प्रयोग कुछ विशेष महत्वपूर्ण एवं दार्शनिक प्रतीत होता है। नंदी सूत्र में श्री संघ को सूर्य की उपमा से उपमित किया गया है । देव वाचक ने कहा है
"परतिस्थिय - गहपहनासगस्स, तवतेय - दित्तलेसस्स । नाणुज्जोयस्स जए, भदं दमसंघ-सूरस्स ।।
-नंदी० गा १० १. दिव्वाए पभाए दिव्वाए छायाए दिव्वाए अच्चीए दिव्वेणं तेएणं दिवाए
लेसाए दस दिसाओ.."पण्ण. पद १ । सू १०७
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