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लेश्या-कोश
बूर वनस्पति; नवनीत ( मक्खन ) और सिरीष के फूल का जैसा स्पर्श होता है उससे भी अनन्तगुण कोमल (स्निग्ध) स्पर्श तीन प्रशस्त लेश्याओं का होता है ।
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(ख) (तओ ) निक्षुण्हाओ ।
- ठाण० स्था ३ । उ ४ । सू २२१ । पृ० २२०
( ग ) x x x तओ निद्ध ु पहाओ x x × ।
- पण ० प १७ ।
पश्चात् की तीन लेश्याओं का स्पर्श उष्ण-स्निग्ध होता है ।
[ दिगम्बर ग्रन्थों में द्रव्यलेश्या के गन्ध; रस और स्पर्श के सम्बन्ध में कोई पाठ उपलब्ध नहीं हुआ । ]
४ । सू १२४१ । पृ० २६७
* १५ द्रव्य लेश्या के प्रदेश
कण्हलेस्सा णं भंते! कइ पएसिया पन्नत्ता ? गोयमा ! अनंतएसिया पन्नता, एवं जाव सुक्कलेस्सा |
- पण ० प १७ । उ ४ । सू १२४३ | पृ० २६८
कृष्ण लेश्या यावत् शुक्ल लेश्या अनन्त प्रदेशी होती है । द्रव्य लेश्या का एक स्कन्ध अनन्त प्रदेशी होता है ।
• १६ द्रव्य लेश्या और प्रदेशावगाह - क्षेत्रावगाह
(क) कण्हलेस्सा णं भंते! कइ पएसोगाढा पन्नत्ता ? गोयमा ! असंखेज्जपएसोगाढा पन्नत्ता, एवं जाव सुक्कलेस्सा |
- पण० प १७ । उ ४ । सू १२४४ | पृ० २६८
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कृष्ण लेश्या यावत् शुक्ल लेश्या असंख्यात प्रदेश क्षेत्र अवगाह करती है । यह लेश्या के एक स्कन्ध की अपेक्षा वर्णन मालूम होता है ।
(ख) लेश्या क्षेत्राधिकार - क्षेत्रावगाह सहाणंसमुग्धादे उववादे सव्वलोय लोयस्सासंखेज्जदिभागं
सुहाणं । खेत्तं तु तेतिये ॥ ५४२ ||
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— गोजी० गाथा ५४२
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