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लेश्या-कोश
से अधिक अनिष्टकर, अर्कतकर, अप्रीतिकर, अमनोज, अनभावने आस्वादवाली कापोतश्या होती है ।
* १३४ तेजोलेश्या के रस
(क) तेऊलेस्सा णं भंते ! पुच्छा । गोयमा ! से जहानामए अंबाण वा जाब सिंदुयाण बा पक्काणं परियावन्नाणं वन्नेणं उववेयाणं पसत्थेणं जाव फासेणं जाव एत्तो मणामतरिया चेव तेऊलेस्सा आसाएणं
पनन्ता ।
- पण्ण० प १७ । उ ४ । सू १२३६ । पृ० २६६
(ख) जह परिणयं बगरसो, पक्कक विट्ठस्स वा वि जारिसओ । रसो उ तेऊए नायव्वो ।
एन्तो वि अनंतगुणो,
- उत्त० अ ३४ । गा १३ । पृ० १०४६
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आम आदि यावत् (देखो कापोत लेश्या १३३) पक्व, अच्छी तरह से परिपक्व, प्रशस्त वर्ण, गंध तथा स्पर्शवाले तथा कबीठ आदि के आस्वाद से अधिक इष्टकर, कंतकर, प्रीतिकर; मनोज्ञ तथा मनभावने आस्वादवाली तेजोलेश्या होती है । अनन्तगुण मधुर आस्वादवाली होती है ।
* १३५ पद्मलेश्या के रस
(क) पम्हलेस्साए पुच्छा । गोयमा ! से जहानामए चंदप्पभा इवा मणसिलाइ वा वरसीधू इ वा वरवारुणी इ वा पत्तासवे इ वा पुप्फासवे इ वा फलासवे इ वा चोयासवे इ वा आसवे इ वा महू इ वा मेरए इ वा कविसाणए इ वा खज्जूरसारए इ वा मुद्दियासारए इ वा सुपक्कखोयरसे इ वा अपिट्ठणट्टिया इ वा जंबुफलकालिया इ वा वरप्पसन्ना इ वा [ आसला ] मंसला पेसला ईसि ओट्ठावलंबिणी इसिं वोच्छेदकडुई ईसि तंबच्छिकरणी उक्कोसमयपत्ता वन्नेणं उववेया जाव फासेणं, आसायणिजा वीसायणिज्जा पीणणिजा विहणिज्जा दीवणिज्जा दप्पणिज्जा मय णिज्जा सव्वेंदियंगाय पल्हाय णिज्जा, भवेयारूवा ? गोयमा ! णो ण सम, पम्हलेस्साणं एतो इतरिया चैव जाव मणामतरिया चेव आसाएणं पन्नत्ता ।
- पण ० प १७ । उ ४ । सू १२३७ । पृ० २६६-६७
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