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( 23 ) हमने सम्पूर्ण जैन वाङ्गमय को १०० वर्गों में विभक्त करके मूल विषयों के वर्गीकरण की एक रूपरेखा ( देखो पृ० १४ ) तैयार की। मूल विषयों में से भी अनेक उपविषयों की सूची भी हमने तैयार की। उनमें से जीव परिणाम की (विषयांकन ०४ ) उपविषय सूची में दी गई है विदवद् वर्ग से निवेदन है कि वे इन विषय सूचियों का गहरा अध्ययन करें। तथा इनमें परिवर्तन, परिवर्द्धन व संशोधन सम्बन्धी अथवा अपने अन्य बहुमूल्य सुझाव भेजकर हमें अनुगृहित करें।
अस्तु लेश्या जैन दर्शन का रहस्यमय विषय है तथा जिसकी व्याख्या कोई भी प्राचीन आचार्य भलीभांति असंदिग्ध रूप में नहीं कर सके हैं। इसलिए हमने सम्पादन के लिए लेश्या' विषय को ग्रहण किया। इसका प्रथम खण्ड पहले प्रकाशित हो चुका है। दूसरा खण्ड आपके सामने है। लेश्या कोश' विषयक तीसरा खण्ड यथा-समय प्रकाशित करने की योजना है।
सम्पादन में हमने निम्नलिखित तीन बातों को आधार माना है।
१-पाठों का मिलान २-विषय के उपविषयों का वर्गीकरण तथा ३-हिन्दी अनुवाद ।
जहाँ लेश्या सम्बन्धी पाठ स्वतन्त्र रूप में मिल गया है वहाँ हमने उसे उसी रूप में ले लिया है लेकिन जहाँ लेश्या के पाठ अन्य विषयों के साथ सम्मिश्रित है वहाँ हमने निम्नलिखित दो पद्धतियां अपनाई है।
(१) पहली पद्धति में हमने सम्मिलित पाठों से लेश्या सम्बन्धी पाठ अलग निकाल लिया है तथा जिस सन्दर्भ में वह पाठ आया है उस सन्दर्भ को प्रारम्भ में कोष्ठक में देते हुए उसके बाद लेश्या सम्बन्धी पाठ दे दिया है यथा-भग० श ११ । उ १ का पाठ । इसमें उत्पल वनस्पति के सम्बन्ध में विभिन्न विषयों को लेकर पाठ है। हमने यहाँ लेश्या सम्बन्धी पाठ ग्रहण किया है तथा उत्पल सम्बन्धी पाठ को पाठ के प्रारम्भ में कोष्ठक में दे दिया है.. ( उप्पले णं एगपत्तए) ते णं भंते ! जीवा किं कण्हलेस्सा, नीललेसा काऊलेस्सा तेऊलेसा ? गोयमा ! कण्हलेस्से वा जाव तेउलेसे वा कण्हलेस्सा जाव नीललेस्सा वा काऊलेस्सा वा तेउलेस्सा वा अहवा
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