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लेश्या - कोश
(छ) इयं ( लेश्या ) च शरीरनामकर्म्मपरिणतिरूपा योगपरिणतिरूपत्वात् योगस्य च शरीरनामकर्म्म परिणति विशेषत्वात्, यत उक्तं प्रज्ञापना वृत्तिकृता
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"योगपरिणामो लेश्या, कथं पुनर्योगपरिणामो लेश्या, यस्मात् सयोगिकेवली शुक्ललेश्यापरिणामेन विहृत्यान्तमुहूर्ते शेषे योग निरोधं करोति ततोऽयोगित्वमलेश्यत्वं च प्राप्नोति अतोऽवगम्यते 'योगपरिणामो लेश्ये 'ति, स पुनर्योगः शरीरनामकर्मपरिणतिविशेषः, यस्मादुक्तम् - "कर्म हि कार्मणस्य कारणमन्येषां च शरीराणामिति" तस्मादौदारिकादिशरीरयुक्तस्यात्मनो वीर्यपरिणतिविशेषः काययोगः १, तथौदारिकवै क्रियाहारकशरी व्यापाराहृतवाग्द्रव्यसमूहसाचिव्यात जीवव्यापारो यः स वाग्योगः २, तथौदारिकादिशरीरव्यापाराहृतमनोद्रव्यसमूहसाचिव्यात् जीवव्यापारो यः स मनोयोग इति ३, ततो यथैव कायादिकरणयुक्तस्यात्मनो वीर्यपरिणतिर्योग उच्यते तथैव लेश्यापीति, अन्ये तु व्याचक्षते - 'कर्मनिष्यन्दो लेश्ये' ति सा च द्रव्याभावभेदात् द्विधा, तत्र द्रव्यलेश्या कृष्णादिद्रव्याण्येव, भावलेश्या तु तज्जन्यो जीवपरिणाम इति । "
-- ठाण० स्था १ । सु ५१ की टीका
यह लेश्या योग की परिणति रूप है विशेष है, अतः लेश्या शरीर नामकर्म की वृतिकार आचार्य हरिभद्र सूरि ने कहा हैं
और योग शरीर नामकर्म की परिणति परिणति रूप है ; जैसा कि प्रज्ञापना
योगपरिणाम ही लेश्या है । योगपरिणाम को लेश्या कहने का कारण यह है कि सयोगिकेवली शुक्ललेश्या के ( उत्कृष्ट ) परिणाम में विहरण करता हुआ आयुष्य की स्थिति का अन्तमूहूर्त शेष रहने पर योगनिरोध करता है, तब वह आयोगत्व और अलेश्यत्व को प्राप्त करता है; इसलिए जाना जाता है कि 'योगपरिणाम ही लेश्या है' । वह योग शरीर नामकर्म की परिणतिविशेष है । क्योंकि कहा गया है— कर्म ही कार्मण शरीर तथा अन्य औदारिकादि शरीरों का कारण है, इसलिए औदारिक शरीर से युक्त आत्मा की वीर्यपरिणति विशेष काययोग है १, औदारिक, वैक्रिय और आहारक शरीर के व्यापार से गृहीत भाषावर्गणा के द्रव्यसमूह के साहाय्य से होने वाला जीव व्यापार बाग्योग है
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