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प्रकाशकीय जैन दर्शन समिति अपने स्थापना काल से ही कोश निर्माण के महत्वपूर्ण कार्य को सम्पादित करने में संलग्न है। स्व० मोहनलालजी बांठिया संस्था के प्राण थे। वे स्वयं एक तत्त्ववेता श्रावक थे। उन्होंने अनुभव किया कि जैन दर्शन पर शोध करने वाले विद्यार्थियों को एक विषय पर समग्र रूप से सामनी उपलब्ध नहीं होती इस वजह से नये छात्र शोध करने में हिचकिचाते हैं। स्व. बांठिया ने चिन्तन करके जैन दर्शन के महत्वपूर्ण विषयों के कोश निर्माण की परिकल्पना की स्व० बांठियाजी के कार्य में श्री श्रीचन्द चोरडिया प्रारम्भ से ही सहयोगी रहे। श्री चोरड़ियाजी प्राकृत-भाषा पर अधिकार रखते हैं। न्यायतीर्थ द्वय है, इस वजह से वे श्वेताम्बर व दिगम्बर दोनों सम्प्रदाय की अवधारणा व मान्यताओं को अच्छी तरह परख सकते हैं।
जैन दर्शन समिति ने इससे पूर्व योग कोश, क्रिया कोश, पुद्गल कोश, वर्धमान जीवन कोश, मिथ्यात्वी का अध्यात्मिक विकास आदि महत्वपूर्ण ग्रन्थ प्रकाशित किये हैं। वर्तमान में लेश्या कोश प्रकाशित कर रही है। लेश्या जैन दर्शन का परिभाषिक शब्द है। भाव परिवर्तन का आधार है लेश्या । लेश्या प्रशस्त कैसे बने यह साधना का आधार बन सकता है। लेश्या पर जितना कार्य जैन दर्शन के विद्वानों ने किया हैं वह शोध के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण देन है। आज के वैज्ञानिक युग में रंग चिकित्सा का विकास हो रहा है। मनोविज्ञान ने कलर थेरेपी पर बहुत कार्य किया है। लेश्या के सिद्धान्त को समझकर वैज्ञानिक दृष्टि से चिन्तन करना भी आवश्यक है।
जैन दर्शन अपने आप में गहन है फिर कोश का कार्य तो अति दुष्कर हो जाता है। साधारण पाठकों के लिये बहुत ज्यादा रुचिकर नहीं हो सकता किन्तु जो शोध करना चाहते हैं उनके लिये अमूल्य कृति साबित हो सकती है।
लेश्या कोश पर पूज्य आचार्य श्री महाप्रज्ञ ने अपना आशीर्वचन प्रदान किया है तथा कार्य को और अच्छे ढंग से सम्पादित किया जा सकता है उसका दिशा दर्शन भी प्रदान किया है। जन दर्शन समिति आचार्य श्री महाप्रज्ञजी के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करती है। आचार्य महाप्रज्ञ आगम सम्पादन का दुरुह कार्य वर्षों से कर रहे हैं। उनका यह कार्य जन शासन व सम्पूर्ण मानवता के लिये अमूल्य निधि है। अनेक वर्षों पूर्व पूज्य गुरुदेव श्री तुलसी ने कोश-निर्माण के कार्य को आगम सम्पादन के पूरक कार्य के रूप में स्वीकार किया था। ......
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