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चाहता है, अपनी भावनाओं को अनुशासित रखना चाहता है तो उसके लिए लेश्या या रंग का ध्यान का प्रयोग बहुत महत्वपूर्ण है। यह लेश्या का विज्ञान, रंग का विज्ञान भीतरी वातावरण को वातानुकूलित बनाने का महत्वपूर्ण विज्ञान है। हम इसका मूल्यांकन और प्रयोग करे। इससे रंगों का संतुलन होगा फलस्वरूप प्रशस्त लेश्या का वातावरण बनेगा।
यद्यपि आगमवाणी के अनुसार पदमलेशी जीव से तेजोलेशी जीव संख्यातगुणे है। कई आचार्य पद्म लेशी जीव से तेजो लेशी जीव असंख्यातगुणे कहते हैं । ध्यान और कर्म
ध्यानानलसमालीढमप्यनादिसमुद्भवम् । सद्यः प्रक्षीयते कर्म शुद्धयत्यङ्गी सुवर्णवत् ॥४८॥
-ज्ञाना० निर्जरा भावना पृ० ४८ यद्यपि कर्म अनादि काल से जीव के साथ लगे हुए हैं, तथापि वे ध्यान रूपी अग्नि से स्पर्श होने पर तत्काल ही क्षय हो जाते हैं। जैसे अग्नि के ताप से सुवर्ण शुद्ध होता है, उसी प्रकार यह प्राणी भी तप से कर्म नष्ट हो कर शुद्ध हो जाता है।
शरीर, मन और चित्त-तीनों लेश्या से प्रभावित होते हैं। यों भी माना जा सकता है कि लेश्या के निर्माण में इन तीनों का योग रहता है। शरीर और मन पौद्गलिक है। चित अपौदगलिक है। फिर भी इनका आपस में गहरा सम्बन्ध है।
हमारी वृत्तियाँ, भाव या आदतें। इन सबको उत्पन्न करने वाला सशक्त तंत्र है लेश्या तंत्र। जब तक लेश्या तंत्र शुद्ध नहीं होता, तब तक आदतों में परिवर्तन नहीं हो सकता । लेश्या तंत्र को शुद्ध करना आवश्यक है । __ लेश्या, योग, भाव आदि जैन आगमों के पारिभाषिक शब्द है। आगम साहित्य या जैन सिद्धान्त में लेश्या के विषय में यत्र-तत्र इसकी चर्चा है । भगवती, उत्तराध्ययन, पन्नवणा आदि आगमों में लेश्या का सांगोपांग विवेचन है। लेश्या जीव की प्रवृत्ति है इसे पांच भावों के साथ सम्बद्ध होना ही पड़ेगा।
महास्कंध द्रव्य वर्गणा का द्रव्य सबसे स्तोक है, क्योंकि वह एक है । द्रव्यार्थता के अपेक्षा एक श्रेणि परमाणु वर्गणा और नाना श्रेणि महास्कन्ध वर्गणा दोनों ही तुल्य होकर सबसे स्तोक है। क्योंकि ये एक संख्या प्रमाण है।
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